आरोग्य हेतु योग : योग मुद्रा : जानिये योग हेतु योग मुद्रा का महत्व और मुद्रा के तरीके
योग, आराम व शांति के लिए विभिन्न शरीर विन्यास और सांसो की तकनीको का संयोजन समझा जाता है। योग की एक सामान्य कक्षा में हम योग की इन तकनीकों को सीखते हैं और इन तकनीको से लाभ प्राप्त करते हैं लेकिन लोगों योग की एक कम प्रचलित स्वतन्त्र और सुक्ष्म / गहरी शाखा भी है उसका नाम है - योग तत्त्व मुद्रा विज्ञान । जैसे जैसे हम योग अभ्यास करते जाते हैं हमे इसका शरीर, मन व चेतना पर सूक्ष्म प्रभाव भी अनुभव होने लगता है।
पूर्व में हमने योग हस्त मुद्रा के मुख्य स्वरूप देखे जिनमे वायु मुद्रा, ज्ञान मुद्रा प्राण मुद्रा, जल मुद्रा और शून्य मुद्रा प्रमुख है। आज हम इन्ही मुद्राओं के विस्तारित स्वारूप को जानेंगे इन योग मुद्राओं में से कुछ योग मुद्राओं की एक झलक है
चिन मुद्रा
चिन्मय मुद्रा
आदि मुद्रा
ब्रह्म मुद्रा
योग मुद्राएँ क्या है
नितांत विशिष्ट और आयुर्वेद के सिद्धांत पर आधारित, योग मुद्राएँ आरोग्यकार साधन समझी जाती हैं, संस्कृत शब्द मुद्रा का अर्थ शरीर के हावभाव (अंग विन्यास) या प्रवृत्ति। मुद्रा के लिए संपूर्ण शरीर अथवा केवल हाथों का उपयोग होता है। मुद्रा का योगिक सांसो के साथ अभ्यास शरीर के विभिन्न अंगो को उत्तेजित कर शरीर में प्राण के प्रवाह को सचेतन करता है। मुद्रा का योगिक सांसो के साथ अभ्यास शरीर के विभिन्न अंगो को उत्तेजित कर शरीर में प्राण के प्रवाह को सचेतन करता है।
हठ योग प्रदीपिका और घेरन्ड संहिता मुद्राओं पर मुख्य ग्रंथ हैं। हठ योग प्रदीपिका में 10 मुद्राओं और घेरन्ड संहिता में 25 मुद्राओं का वर्णन है। कुछ योग मुद्राएँ हमारे लिए सहज हैं। बस अपनी उंगलियों से हाथों को स्पर्श करके हम अपनी प्रवृत्ति, सोच को प्रभावित कर सकते हैं। और वहीं अपने भीतर की आंतरिक शक्ति से शरीर को स्वस्थ कर सकते हैं।
योग मुद्राएँ कैसे काम करती है और महत्त्व क्या है
आयुर्वेद के अनुसार शरीर में रोग असंतुलन के कारण होते हैं, और यह असंतुलन पाँच तत्वों की कमी या अधिकता के कारण होता है। हमारी उंगलियों में इन तत्वो के गुण हैं। प्रत्येक तत्व शरीर में एक विशिष्ठ और महत्वपूर्ण कार्य से संबंधित है। उंगलियाँ वास्तव में विद्युत परिपथ बनाती हैं विभिन्न मुद्राएँ ऊर्जा के प्रवाह को नियंत्रित कर शरीर में (पंचतत्व) - पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश के संतुलन को प्रभावित करती हैं और स्वास्थ्य लाभ सुगम करती हैं।
मुद्राएँ तंत्रिकाओं से संबंधित होने के कारण मस्तिष्क की सहज संरचना से एक सूक्ष्म संबंध स्थापित करती हैं और मस्तिष्क के उन भागों में अचेतन प्रतिक्रियाओं को प्रभावित भी करती हैं। इस तरह आंतरिक ऊर्जा संतुलित होकर सही दिशा मे प्रवाहित होने लगती है और संवेदी अंगो, ग्रंथियों, तंत्रिकाओं (sensory organs, glands, veins and tendons) के परिवर्तन को प्रभावित करती है। इस तरह योगिक अनुभव का एक नया आयाम खुलता है।
कुछ मुद्राएँ :
चिन मुद्रा | Chin mudra
चिन्मय मुद्रा | Chinmaya Mudra
आदि मुद्रा | Adi Mudra
ब्रह्म मुद्रा | Brahma Mudra
योग मुद्राओं को वज्रासन, सुखासन, पद्मासन या फिर आराम से कुर्सी पर बैठ कर भी कर सकते हैं। उठती बैठती साँसे मुद्राओं के प्रभाव को बढ़ाती है।
प्रत्येक योग मुद्रा में कम से कम 12 साँसे लें और शरीर में ऊर्जा के प्रवाह को महसूस करें।
चिन मुद्रा क़ी विधि Chin Mudra
अपनी तर्जनी व अंगूठे को हल्के से स्पर्श करे और शेष तीनो उंगलियों को सीधा रखे।
अंगूठे व तर्जनी एक दूसरे हो हल्के से ही बिना दबाव के स्पर्श करें।
तीनो फैली उंगलियों को जितना हो सके सीधा रखे।
हाथों को जंघा पर रख सकते हैं, हथेलियों को आकाश की ओर रखे।
अब सांसो के प्रवाह व इसके शरीर पर प्रभाव पर ध्यान दें।
चिन मुद्रा के लाभ
बेहतर एकाग्रता और स्मरण शक्ति।
नींद में सुधार।
शरीर में ऊर्जा की वृद्धि।
कमर के दर्द में आराम।
चिन्मय मुद्रा
चिन्मय मुद्रा एक हाथ का इशारा है, इसके वजन घटाने के लाभों के लिए प्रशंसा की जाती है। यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए कहा जाता है। यह वक्षीय क्षेत्र को मजबूत करता है और पाचन क्षमता को बढ़ाता है।
चिन्मय मुद्रा विधि
इस मुद्रा में अंगूठा और तर्जनी चिन मुद्रा की तरह एक दूसरे को स्पर्श करते हैं।
शेष उंगलियाँ मुड़कर हथेली को स्पर्श करती हैं।
हाथों को जाँघो पर हथेलियों को आकाश की ओर करके रखे
लंबी गहरी उज्जयी साँसे लें।
एक बार फिर साँस के प्रवाह और शरीर पर इसके प्रभाव को महसूस करें।
चिन्मय मुद्रा के लाभ
शरीर में ऊर्जा के प्रवाह को सुचारित करती है।
पाचन शक्ति हो बढ़ती है।
आदि मुद्रा
आदि मुद्रा हाथ का इशारा है। इसे पहला इशारा कहा जाता है क्योंकि यह पहली स्थिति है जब भ्रूण के हाथ मां के गर्भ के अंदर बनाने में सक्षम होते हैं। इसका उपयोग आध्यात्मिक योग अभ्यास में मन और तंत्रिका तंत्र को शांत करने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग अक्सर ध्यान के अभ्यास में किया जाता है। यह प्राणायाम श्वास अभ्यास के लिए अभ्यासकर्ता को तैयार करने में मदद करता है। यह मुद्रा सांस लेने के पैटर्न और आपकी आंतरिक छाती संरचना पर केंद्रित है। आसनों में भी इसका अभ्यास किया जा सकता है।
आदि मुद्रा विधि
आदि मुद्रा में अंगूठे को कनिष्ठा के आधार पर रखे।
उंगलियों को अंगूठे के ऊपर से मोड़कर हल्की मुट्ठी बना लें।
हाथों को जाँघो पर हथेलियों को आकाश की ओर करके रखे।
लंबी गहरी उज्जयी साँसे लें।
एक बार फिर साँस के प्रवाह और शरीर पर इसके प्रभाव को देखें।
आदि मुद्रा के लाभ
तंत्रिका तन्त्र को आराम देती है।
ख़र्राटों में कमी आती है।
सिर में ऑक्सिजन के प्रवाह को बढ़ाती है।
फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है।
ब्रह्म मुद्रा
ब्रह्म मुद्रा योग की एक अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्रा है। यह योग की लुप्त हुई क्रियाओं में से एक है और इसके बारे में बहुत कम ज्ञान उपलब्ध है। इसके अंतर्गत ब्रह्ममुद्रा के तीन मुख और भगवान दत्तात्रेय के स्वरूप को स्मरण करते हुए कोई साधक तीन दिशाओं में अपना सिर घुमाता है। इसी कारण इसे ब्रह्ममुद्रा कहा जाता है।
ब्रह्म मुद्रा विधि
दोनो हाथों को आदि मुद्रा में लेकर दोनो हाथों की मुठ्ठी के जोड़ों को एक दूसरे से जोड़कर नाभि के पास हथेलियों को आकाश की ओर रखे
लंबी गहरी साँसे लें और ऊर्जा के प्रवाह पर ध्यान दें।
ब्रह्म मुद्रा के लाभ
जिन लोगों को सर्वाइकल स्पोंडलाइटिस, थाइराइड ग्लांट्स की शिकायत है उनके लिए यह आसन लाभदायक है।
इससे गर्दन की माँसपेशियाँ लचीली तथा मजबूत होती हैं।
आध्यात्मिक दृष्टि से भी यह आसन लाभदायक है।
आलस्य भी कम होता जाता है
बदलते मौसम के सर्दी-जुकाम और खाँसी से छुटकारा भी मिलता है।
योग मुद्राएँ कैसे काम करती है और महत्त्व क्या है | How do yoga mudras work and signifiance of mudras
आयुर्वेद के अनुसार शरीर में रोग असंतुलन के कारण होते हैं, और यह असंतुलन पाँच तत्वों की कमी या अधिकता के कारण होता है। हमारी उंगलियों में इन तत्वो के गुण हैं। प्रत्येक तत्व शरीर में एक विशिष्ठ और महत्वपूर्ण कार्य से संबंधित है। उंगलियाँ वास्तव में विद्युत परिपथ बनाती हैं विभिन्न मुद्राएँ ऊर्जा के प्रवाह को नियंत्रित कर शरीर में (पंचतत्व) - पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश के संतुलन को प्रभावित करती हैं और स्वास्थ्य लाभ सुगम करती हैं।
मुद्राएँ तंत्रिकाओं से संबंधित होने के कारण मस्तिष्क की सहज संरचना से एक सूक्ष्म संबंध स्थापित करती हैं और मस्तिष्क के उन भागों में अचेतन प्रतिक्रियाओं को प्रभावित भी करती हैं। इस तरह आंतरिक ऊर्जा संतुलित होकर सही दिशा मे प्रवाहित होने लगती है और संवेदी अंगो, ग्रंथियों, तंत्रिकाओं (sensory organs, glands, veins and tendons) के परिवर्तन को प्रभावित करती है। इस तरह योगिक अनुभव का एक नया आयाम खुलता है।