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शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

आंत्रिक #ज्वर (#टायफाइड) , Internal #fever #typhoid टाइफाइड #बुखार (#मियादी बुखार )

                                 *आंत्रिक ज्वर (टायफाइड)*
                                          *रोगी ध्यान दे**


  ✍  प्रदूषित वातावरण और दूषित जल व आहार के अधिक समय तक सेवन करने से आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) उत्पन्न होता है। आंत्रिक ज्वर को मियादी बुखार, मोतीझारा आदि अनेक नामों से संबोधित किया जाता है। आंत्रिक ज्वर से पीड़ित रोगी शारीरिक रूप से बहुत कमजोर हो जाता है। यदि समय पर उचित चिकित्सा न दी जाये तो रोगी की मृत्यु हो सकती है।

✍  आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) गंदा पानी पीने की वजह से और बाहर का भोजन करने से फैलता है क्योंकि बाहर की ज्यादातर चीजें खुली हुई होती हैं, इन खुली हुई चीजों में मच्छर और मक्खियां बैठती हैं जो उनमें कीटाणु छोड़ देते हैं जिसकी वजह से यह बीमारी फैलती है। इस बीमारी के जीवाणु किसी रोगी व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति तक पहुंचकर उन्हें भी रोगी बनाते हैं। खासकर छोटे बच्चे और युवा इस रोग से पीड़ित होते हैं।
✍ जीवाणु शरीर के अन्दर पहुंचकर आंतों में जहर पैदा करके आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) को पैदा करते हैं। जीवाणुओं के जहर के असर से आंतों में जख्म पैदा हो जाते हैं। ऐसी हालत मे रोगी के शौच में खून आने लगता है। अतिसार की स्थिति में रोगी की तबियत अधिक खराब होने की आशंका ज्यादा रहती है। यह बुखार, असमय खाना खाने, देश-विदेश में रुचि के विरुद्ध खाना, अजीर्ण में भोजन, उपवास, मौसम में परिवर्तन, विषैली चीजों का पेट में पहुंचना, अधिक मैथुन, अधिक चिन्ता, शोक, अधिक परिश्रम, धूप तथा आग में देर तक काम करना आदि के कारण हो जाता है।
                                             
                                              ‼लक्षण :-‼

    ✍ आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) में शरीर में विभिन्न अंगों में पीड़ा, सिरदर्द, कब्ज, बैचेनी और बुखार के कम-ज्यादा होने के लक्षण दिखाई देते हैं। बिस्तर पर अधिक समय तक लेटे रहने से कमर में दर्द भी होने लगता है। रोगी को रात में नींद भी नहीं आती है। पहले सप्ताह में बुखार 100 से 102 डिग्री तक होता है।
                                                ‼उपचार‼

✍बार बार होने वाले टायफॉइड के लिए आयुवेद में बेहतरीन दवाइयां होती है जिससे टायफॉइड दुबारा नही होता है,मधुरांतक वटी,संजीवनी,ब्राह्मी वटी,जयमंगल रस इत्यादि ओषधियों का रोगानुसार प्रयोग करने से काफी हद तक टायफॉइड से बचा जा सकता है।

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