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गुरुवार, 17 दिसंबर 2020

#विकास अवस्थाएं #शैशवावस्था बाल्यावस्था किशोरावस्था #DEVELOPMENT STAGES #मनुष्य अवस्था

 जानिए मनुष्य के शारीरिक अवस्था के 3 स्तर⛳
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... आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य की सामान आयु 100 वर्ष मानी गई है इस  जीवन अवधि को संक्षेप में तीन अवस्थाओं में बांटा गया है। 1.बाल्यावस्था 2.मध्य अवस्था 3.वृद्धावस्था।
 
⛳1-बाल्यावस्था: जन्म से 16 वर्ष : इसमें 16 वर्ष की आयु तक मनुष्य बालक कहलाता है यही उसकी बाल्यावस्था है।

⛳2-मध्य अवस्था: 16 से 70 वर्ष : इस मध्यवस्था को चार भागों में बांटा गया है-
1.वृद्धि: 16 से 20 वर्ष तक की आयु का समय वृद्धि काल माना गया है जिसमें शरीर की धातुओं में तीव्रता से वृद्धि होती है।

 2.यौवन: 21 से 30 वर्ष की आयु मनुष्य का जीवन काल माना जाता है इस अवधि के दौरान उसके सभी धातु तथा सभी इंद्रियां बल शक्ति और वीर से भरपूर हो जाते हैं।

3.संपूर्णता: 31 से 40 वर्ष की आयु के अंतराल में सब धातुओं व इंद्रियों के अंदर बलवीर की संपूर्णता होती है।

4. परीहाणि: 41 से 70 वर्ष की आयु तक धातु इंद्रियों के बल में क्रमशः थोड़ी थोड़ी कमी आती रहती है अतः इस अवस्था को परिहाणी नाम से जाना जाता है।

⛳3-वृद्धावस्था:  70 वर्ष के पश्चात 100 वर्ष तक मनुष्य की वृद्धावस्था अथवा बुढ़ापा माना गया है। इस अवधि में उसकी धातुओं व इंद्रियों की शक्ति आदि में दिन-प्रतिदिन क्षीणता प्रारंभ हो जाती है। इंद्रियां शिथिल होने लगती हैं परिणाम स्वरूप वह अनेक रोगों का शिकार होने लगता है।

💐ऋषियों के अनुसार एक स्वस्थ एवं प्रसन्न व्यक्ति के निम्नलिखित 10 गुण हैं💐

1.बाल्य- अर्थात आयु की कोमलता मन में सहजता प्रसन्नता बच्चे की तरह निर्लिप्तता।
 2.वृद्धि- अर्थात शरीर में वृद्धि
3. छवि-अर्थात चेहरे की कांति अथवा तेज, बढ़ती उम्र का प्रभाव भले ही शरीर पर दिखाई दे परंतु मुख की कांति बनी रहे यही छवि नामक गुण होता है
4. मेधा- अर्थात विवेक शक्ति ,स्मरण शक्ति व विचार शक्ति का होना
5. त्वक- अर्थात त्वचा की कोमलता त्वचा में रुक्षिता का व झुर्रियों का अभाव व न्यूनता
6. दृष्टि- अर्थात नेत्र ज्योति और देखने की क्षमता ठीक होना
7. शुक्र- अर्थात जीवन शक्ति ठीक हो कोई अंग लाचार एवं अशक्त ना हो
8. विक्रम- अर्थात साहसिक कार्य करने की शक्ति एवं एक्शन सरकार की क्षमता का होना
9. बुद्धि- अर्थात ज्ञान तथा योजना एवं सोचने समझने की संपूर्ण शक्ति होना
10. कामेन्द्रिय- अर्थात हाथ-पांव, कामइंद्रियों में और कार्य करने की शक्ति का  सही होना।

इन उपरोक्त गुणों के अभाव में मनुष्य जीवन आनंद में नहीं होता तथा उसका शरीर अनेक प्रकार के रोगों का शिकार होने लगता है वह अपनी संबंध जीवन चर्या व दिनचर्या भी नहीं निभा पाता। अतः आयुर्वेद व ऋषि-मुनियों के अनुसार जब तक जीवन है तब तक हर अवस्था में शरीर को ठीक रखने का निर्देश दिया है।
....हालांकि आज के इस गलत खानपान और रहन-सहन के साथ ही पश्चात संस्कृति को अपनाकर लगभग हर पांचवा व्यक्ति बीमार बना रहता है व रोग बीमारियों के कारण अपनी पूर्ण आयु ही नहीं जी पाता ।

रोगों का शिकार होने पर मनुष्य को चिकित्सा का आश्रय लेना ही पड़ता है  पर उसे ऐसी चिकित्सा पद्धति पर जाना चाहिए जिसका शरीर पर कोई दुष्प्रभाव भी ना हो और वह रोग जड़ से समाप्त हो जाए।

 शरीर ठीक है या नहीं इसको जानने के लिए- अपने निकटतम आयुर्वेद चिकित्सक या नाड़ी वैद्य से संपर्क कर अपने संपूर्ण शरीर के बारे में जान सकते हैं और समय रहते उनका उपचार कर सकते हैं।

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