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शनिवार, 8 सितंबर 2018

सोना, चाँदी, तांबे, कांसा, पीतल, लोहा, स्टील, एलुमिनियम , मिट्टी के #बरतन में भोजन

*सोना*

सोना एक गर्म धातु है। सोने से बने पात्र में भोजन बनाने और करने से शरीर के आन्तरिक और बाहरी दोनों हिस्से कठोर, बलवान, ताकतवर और मजबूत बनते है और साथ साथ सोना आँखों की रौशनी बढ़ता है।

                                    *चाँदी*

चाँदी एक ठंडी धातु है, जो शरीर को आंतरिक ठंडक पहुंचाती है। शरीर को शांत रखती है  इसके पात्र में भोजन बनाने और करने से दिमाग तेज होता है, आँखों स्वस्थ रहती है, आँखों की रौशनी बढती है और इसके अलावा पित्तदोष, कफ और वायुदोष को नियंत्रित रहता है।

                                                 *कांसा*

काँसे के बर्तन में खाना खाने से बुद्धि तेज होती है, रक्त में  शुद्धता आती है, रक्तपित शांत रहता है और भूख बढ़ाती है। लेकिन काँसे के बर्तन में खट्टी चीजे नहीं परोसनी चाहिए खट्टी चीजे इस धातु से क्रिया करके विषैली हो जाती है जो नुकसान देती है। कांसे के बर्तन में खाना बनाने से केवल ३ प्रतिशत ही पोषक तत्व नष्ट होते हैं।

                                                 *तांबा* 

तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से व्यक्ति रोग मुक्त बनता है, रक्त शुद्ध होता है, स्मरण-शक्ति अच्छी होती है, लीवर संबंधी समस्या दूर होती है, तांबे का पानी शरीर के विषैले तत्वों को खत्म कर देता है इसलिए इस पात्र में रखा पानी स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है. तांबे के बर्तन में दूध नहीं पीना चाहिए इससे शरीर को नुकसान होता है।

                                                *पीतल*
पीतल के बर्तन में भोजन पकाने और करने से कृमि रोग, कफ और वायुदोष की बीमारी नहीं होती। पीतल के बर्तन में खाना बनाने से केवल ७ प्रतिशत पोषक तत्व नष्ट होते हैं।

                                                 *लोहा*

लोहे के बर्तन में बने भोजन खाने से  शरीर  की  शक्ति बढती है, लोहतत्व शरीर में जरूरी पोषक तत्वों को बढ़ता है। लोहा कई रोग को खत्म करता है, पांडू रोग मिटाता है, शरीर में सूजन और  पीलापन नहीं आने देता, कामला रोग को खत्म करता है, और पीलिया रोग को दूर रखता है. लेकिन लोहे के बर्तन में खाना नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसमें खाना खाने से बुद्धि कम होती है और दिमाग का नाश होता है। लोहे के पात्र में दूध पीना अच्छा होता है।
                                                 *स्टील*

स्टील के बर्तन नुक्सान दायक नहीं होते क्योंकि ये ना ही गर्म से क्रिया करते है और ना ही अम्ल से. इसलिए नुक्सान नहीं होता है. इसमें खाना बनाने और खाने से शरीर को कोई फायदा नहीं पहुँचता तो नुक्सान भी  नहीं पहुँचता।
                                           *एलुमिनियम*

एल्युमिनिय बोक्साईट का बना होता है। इसमें बने खाने से शरीर को सिर्फ नुक्सान ही होता है। यह आयरन और कैल्शियम को सोखता है इसलिए इससे बने पात्र का किसी भी रूप में उपयोग नहीं करना चाहिए। इससे हड्डियां कमजोर होती है. मानसिक बीमारियाँ होती है, लीवर और नर्वस सिस्टम को क्षति पहुंचती है। उसके साथ साथ किडनी फेल होना, टी बी, अस्थमा, दमा, बात रोग, शुगर जैसी गंभीर बीमारियाँ होती है। एलुमिनियम के प्रेशर कूकर से खाना बनाने से 87 प्रतिशत पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं।
                                                *मिट्टी*

मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाने से ऐसे पोषक तत्व मिलते हैं, जो हर बीमारी को शरीर से दूर रखते हैं । इस बात को अब आधुनिक विज्ञान भी साबित कर चुका है कि मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाने से शरीर के कई तरह के रोग ठीक होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, अगर भोजन को पौष्टिक और स्वादिष्ट बनाना है तो उसे धीरे-धीरे ही पकना चाहिए। भले ही मिट्टी के बर्तनों में खाना बनने में वक़्त थोड़ा ज्यादा लगता है, लेकिन इससे सेहत को पूरा लाभ मिलता है। दूध और दूध से बने उत्पादों के लिए सबसे उपयुक्त हैं मिट्टी के बर्तन। मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने से पूरे १०० प्रतिशत पोषक तत्व मिलते हैं। और यदि मिट्टी के बर्तन में खाना खाया जाए तो उसका अलग से स्वाद भी आता है।
तांबे के बरतन में रखा पानी पीते हैं, तो कभी ना करें ये गलती।

(आयुर्वेद शास्त्र)

आयुर्वेद में रसोईघर को अच्छे स्वास्थ्य की पहली सीढ़ी माना जाता है। यहां उपयोग किए मसालों से लेकर खाने या भोजन पकाने के लिए इस्तेमाल बर्तनों तक को स्वास्थ्य का कारक माना जाता है। पूर्वकाल के अधिकांश रसोईघरों में भोजन खाने अथवा पकाने के लिए भी मिट्टी के अलावा, कांसा, पीतल, लोहा, एल्यूमिनियम, चांदी या तांबे आदि के बरतनों का प्रयोग होता था।

परंपरागत से अलग आधुनिक बर्तन

हालांकि तब स्टील के बर्तन अस्तित्व में नहीं आए थे, इसलिए बर्तनों में इन धातुओं का इस्तेमाल होता था, लेकिन स्टील के बर्तन आने के बाद से सस्ता और टिकाऊ के कारण कांसा, पीतल और तांबा जैसे धातुओं के बर्तन उपयोग में लगभग नगण्य हो गए।

परंपरागत से अलग आधुनिक बर्तन

कारण यही रहा कि कीमत में अधिक होने के अलावा इनके रख-रखाव में भी अधिक मेहनत और विशेष देखभाल की जरूरत होती है, जबकि स्टील के साथ ऐसा कुछ भी नहीं है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इन बर्तनों के इस्तेमाल से कई स्वास्थ्य फायदे भी होते हैं। हालांकि हम यहां इन सभी पर बात ना करते हुए सिर्फ तांबे के विषय में बात कर रहे हैं।

तांबे के बर्तन में रखा पानी

तांबे के बर्तन में पानी पीना स्वास्थ्य और शरीर के लिए कई प्रकार से उपयोगी माना गया है लेकिन बहुत कम लोग इसके उपयोग की सही विधि जानते हैं। गलत विधि से प्रयोग होने के कारण शरीर को या तो इसका लाभ मिल नहीं पाता या मिलता भी है तो संपूर्ण लाभ नहीं मिल पाता। सही और गलत विधियों की चर्चा हम आखिर में करेंगे, पहले इसके गुणों की बात करते हैं।

प्राकृतिक जीवाणिरोध के रूप में 'तांबा'

तांबा धातु अपने आप में एक प्राकृतिक जीवाणिरोध होता है। वैज्ञानिक शोधों में भी इसके स्वास्थ्य गुणों को प्रमाणित किया जा चुका है। एक अध्ययन के अनुसार ई-कोलाई के 99.9 प्रतिशत जीवाणु तांबे की सतह पर 2 घंटे में ही समाप्त हो गए।

एंटीबैक्टीरियल, एंटी-इंफ्लामेंटरी और कैंसररोधी प्रॉपर्टीज

पानी के साथ तांबा रासायनिक प्रतिक्रिया करता है और इस तरह इसमें एंटीबैक्टीरियल, एंटी-इंफ्लामेंटरी और कैंसररोधी प्रॉपर्टीज उत्पन्न होते हैं। यही कारण है कि तांबे के बरतन में रखा पानी पीना कई प्रकार की बीमारियों को ठीक करता है, इसके इन गुणों से मेडिकल साइंस भी इनकार नहीं करता।

अध्ययन
2012 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार तांबे के पात्र में जल रखने से इसकी अशुद्धियों को भी कम किया जा सकता है। अध्य्यन में पाया गया कि 16 घंटे तक इस धातु के पात्र में पानी रखने से उसमें मौजूद ज्यादातर जीवाणु मर गए। उस पानी में विशेष रूप से मौजूद ‘पेचिश के विषाणु’ और ‘ई-कोलाई’ के अमीबा तो पूरी तरह समाप्त हो गए।

आंतरिक और बाह्य घावों के लिए लाभकारी

अपने एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लामेंटरी गुणों के कारण ताम्रजल शरीर को अपने आंतरिक और बाह्य घावों को जल्दी भरने में मदद मिलती है। यह थाइरॉयड ग्रंथि के स्राव को भी संतुलित करता है, अर्थराइटिस के दर्द को ठीक करने में लाभकारी है। शरीर में लौह तत्वों के अवशोषण में सहायक होकर खून की कमी को दूर करता है, कोलेस्ट्रोल कम करता है।

आयुर्वेद में ताम्रजल

आयुर्वेद के अनुसार तांबे के पात्र में रखा पानी पीना शरीर में वात, पित्त और कफ तीनों को ही संतुलित करता है, लेकिन इसके लिए यह भी आवश्यक कि पानी कम से कम इसमें 8 घंटे रखा होना चाहिए। तांबे के बरतन में रखे पानी की एक और खास बात यह है कि यह पानी कभी भी बासी नहीं होता और लंबे समय के लिए ताजा रहता है।

पानी से भरे तांबे के बरतन को जमान पर रखने के नुकसान

लोग अक्सर इस पानी के इस्तेमाल में एक असावधानी बरतते हैं। ज्यादातर घरों में इसके स्वास्थ्य लाभ देखते हुए तांबे के जग या ग्लास में पानी रखकर उसे पिया जाता है, लेकिन ध्यान यह रखें कि इस बरतन को कभी भी जमीन पर ना रखें वरना आपको इसका कोई भी लाभ नहीं मिलेगा।

पानी से भरे तांबे के बरतन को जमान पर रखने के नुकसान

दरअसरल जमीन पर रखने से पृथ्वी की गुरुत्वाकर्ष्ण शक्ति के कारण तांबे के सभी गुण पानी में नहीं मिल पाते और इस प्रकार आपको इसके लाभ भी नहीं मिलते। इसलिए तांबे के पात्र में पानी रखने के बाद उसे कभी भी जमीन पर ना रखें, बल्कि उसे लकड़ी की मेज या टेबल पर रखें।

कॉपर ऑक्साइड

इसके अलावा यह भी ध्यान रखें कि इसके अंदरूनी तले को अच्छी प्रकार साफ करें, वरना उसपर कॉपर ऑक्साइड की परत (हरे रंग की) जमने लगती है और तब भी आपको इस पानी के पूरे लाभ नहीं मिल पाते। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कॉपर ऑक्साइड की परत के कारण तांबे के साथ पानी का सीधा संपर्क नहीं हो पाता और इस कारण रासायनिक क्रिया हो नहीं पाती।
धन्यवाद ।
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