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बुधवार, 5 दिसंबर 2018

पँचगगव्य चिकित्सा , गौमुत्र , Pentagogy therapy, Gumutra

             * गौमय वस्ते लक्ष्मी गौमुत्र धन्वंतरि *
धन्वंतरि आरोग्य के देव हैं और देशी गाय के मूत्र को धन्वंतरि कहा गया है आर्थत गौमुत्र सर्वरोगनाशक हैं।
आज इस लेख के द्वारा भाई राजीवदीक्षित जी लिखित पँचगगव्य चिकित्सा पुस्तक से गौमुत्र के प्रभावशाली उपयोग की जानकारी देने जा रहा हूँ ।
देशी गौमाता जो  गर्भवती न हो उनका ही मुत्र औषधि हेतु सर्वोत्तम है। गौमुत्र को सेवन से पहले आठ तह सूती कपड़े से छानकर ही उपयोग करना चाहिये। स्वस्थ इंसान को 10 से 20 ml अस्वस्थ इंसान हेतु 50 ml से 100ml सुबह खाली पेट सेवन करना चाहिये। इसे ही नही किसी भी औषधि को 3 माह से ज्यादा लगातार सेवन नहीं करना चाहिये इससे ज्यादा दिनों तक सेवन की आवश्यकता हो तो कुछ दिनों का अंतर रख कर पुनः सेवन करना चाहिये।कब्ज से कैंसर हर रोग की रामबाण औषधि है गौमुत्र। गौमुत्र एलोवेरा व गंगाजल कभी भी खराब नहीं होता।
गौमुत्र में पाए जाने वाले रसायनिक तत्व व उनका रोगों पर प्रभाव
1.  नाइट्रोजन :- मूत्रल,वृक्क का प्राकृतिक उत्तेजक,रक्त विषम्यता को निकलता है
2.  गन्धक:- रक्त शोधक,बड़ी आँत की पुरः सरण क्रिया को बल मिलता है
3.  अमोनिया:- शरीर धातुयो व रक्त संगठन को स्थिर करता है
4.  अमोनिया गैस :- फेफड़े व श्वसन अंगों को संक्रमण से बचाता है
5.   तांबा:- अनुचित मेद बनने से रोकता व शरीर को जीवाणुओं से बचाता है
6.   आयरन :- रक्त में उचित लाल कणों को बनाये रखना व कार्य शक्ति को स्थिर रखना
7.   यूरिया :- मुत्र उत्सर्ग पर प्रभाव व कीटाणु नाशक
8.   यूरिक एसिड:- हृदय शोथ नाशक, मूत्राल होने से विष शोधक
9.   फॉस्फेट :- मूत्रवाही संस्थान से पथरी कण निकालने में सहायक
10.  सोडियम :- रक्त शोधक, अम्लता नाशक
11.  पोटैशियम :- आमवात नाशक शुद्ध कारक, मांसपेशियों में दौर्बल्य, आलस्य नाशक
12.  मैंगनीज :- कीटाणुनाशक, कीटाणु बनने से रोकना व गैंगरीन,संड़ाध से बचाता है
13.  कार्बोलिक एसिड :- कीटाणुनाशक, कीटाणु बनने से रोकना व गैंगरीन,संड़ाध से बचाता है
14.  कैल्शियम :- रक्त शोधक,अस्थि पोषक,जंतुघ्न, रक्त स्कंदक
15.  नमक :- दूषित व्रण, नाडी व्रण, मधुमेह जन्य सन्यास,विषम्यता, अम्लरक्तता नाशक,जंतुघ्न
16.  विटामिन ए बी :- जीवनीय तत्व,उत्त्साहस्फुर्ती बनाये रखना, घबराहट प्यास से बचना,अस्थि पोषक,प्रजनन शक्तिदाता
17.  अन्य मिनरल्स :- रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाना
18.   दुग्ध शर्करा :- तृप्ति रहती है,मुख शोष, हृदय को बल व स्वस्थ , प्यास घबराहट को मिटाता है
19.   एंजाइम्स :-  पाचकरस बनाना व रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाना
20.   जल :- जीवनदाता,रक्त को तरल व तापक्रम को स्थिर रखना
21.   हिप्यूरिक एसिड :- मुत्र के द्वारा विष को बाहर निकलना
22.   क्रिएटिनिन :- जंतुघ्न है
23.   हार्मोन्स :- आठ मास की गर्भवती गौ माता के मूत्र में हार्मोन्स ही होते हैं जो स्वास्थ्यवर्धक है
24.   स्वर्णक्षार :- जंतुघ्न रोग निरोधक शक्ति बढ़ता है

गौमुत्र का घरेलू उपयोग :-
1 कब्ज व उदर शुद्धि हेतु 
2 जो सीधे गौमुत्र नही ले सकते उन्हें गौमुत्र में हरड़े चूर्ण को भिगोकर धीमी आंच पर पकाये जब जलीय तत्व नष्ट हो जाये तो इस चूर्ण का उपयोग करने से गौमुत्र का लाभ मिलता है
3 जीर्णज्वर,पाण्डु, सूजन में चिरायते के पानी मे गौमुत्र मिलाकर 7 दिन सुबह शाम
4 खाँसी दमा जुकाम आदि विकारों  में सीधे गौमुत्र
5 पाण्डु रोग में ताजा स्वच्छ सुबह खाली पेट एक माह ( इस मुत्र में लौह बारीक चूर्ण मिलाकर अच्छी तरहः छानकर सेवन से जल्दी लाभ होता है)
6 बच्चों की खोखली खाँसी में हल्दी मिलाकर
7 उदर के सभी रोग हेतु
8 जलोदर रोगी को  गौदुग्ध व गौमुत्र में शहद मिलाकर
9 शरीर सूजन में सिर्फ दूध व मुत्र का सेवन करें भोजन नही
10 गौमुत्र में नमक  शक्कर बराबर मिलाकर सेवन से उदर रोग शमन होता है
11 गौमुत्र में सेंधानमक ब राई चूर्ण मिला कर सेवन से उदर रोग नष्ट होता है
12 आखो की जलन,कब्ज,सुस्ती व अरुचि में गौमूत्र के साथ शक्कर 
13 खाज खुजली में गौमूत्र में अम्बा हल्दी मिलाकर 
14 प्रसूति के बाद सुवा रोग में 
15 चर्म रोग में हरताल बाकुची मालकांगनी का पेस्ट गौमूत्र युक्त लेप 
16  सफ़ेद दाग मे बाकुची मालकांगनी गौमूत्र युक्त लेप 
17 सफेद दाग बाकुची के बीज का लेप गौमूत्र युक्त
  18 खुजली होने पर गौमूत्र के मालिश व बाद में स्नान 
  19 कृष्णजरिक को गौमूत्र में पीसकर शरीर पर मालिश से चर्म रोग हेतु 
  20 यकृत व पलीहा के सूजन में ईंट को तपाकर गौमूत्र में बुझाकर सेक करनी चाहिये 21 कृमि रोग में डिकामली का चूर्ण  गौमूत्र के साथ 
  22 सुवर्ण,लोहवत्सनाभ,कुचला ,शिलाजीत को शुद्ध व इनके भस्म बनाने हेतु उपयोग होता है
  23 चर्मरोग में उपयोगी महामृच्यादी तेल,पंचगव्य नासिका धृत,पंचगव्य धृत व सभी पंचगव्य औषधि निर्माण हेतु उपयोग किया जाता है
  24 फाइलेरिया ( हाथीपांव) रोग हेतु सुबह खलिपेट सेवन
  25 गौमुत्र का क्षार उदर वेदना,मूत्रारोध,वायु व अनुलोमन में दिया जाता है
  26 बालो की हर समस्या हेतु सर में मालिश कर थोड़ी देर बाद धोने से (झड़ना,डैंड्रफ,सफेद,रूखे) नष्ट होता है
  27 कमला रोग में अतिउपयोगी होता है
  28 गौमुत्र में पुराना गुड़ हल्दी मिलाकर सेवन से कुष्ठ,चर्म व हाथीपांव रोग सेवन से आश्चर्यजनक परिणाम मिलते हैं
  29 गौमुत्र के साथ अरण्ड का तेल पीने से एक माह सन्धिवात व अन्य वातविकार के रोग नष्ट हो जाता है
  30 बच्चो के उदर वेदना पेट फूलने में गौमुत्र में नमक मिलाकर सेवन करना चाहिये
  31 बच्चो के सूखा रोग में एक माह तक गौमुत्र में केशर मिलाकर सेवन कराना चाहिये
  32 खाज खुजली चर्म रोग में गौमुत्र में निम के पत्ते की चटनी पीस कर लगाना चाहिये
  33 क्षय रोग में गौमुत्र व गोबर की गंध से इसके जंतु नष्ट होते है व क्षय रोगियों को गौमुत्र का नियमित सेवन करना चाहिये
  34 सभी प्रकार के चर्म रोग, घाव गैंगरीन जैसे व मधुमेह रोगी के जख्म में गौमुत्र में गेंदे के फूल की पंखुडी हल्दी का लेप अतिउपयोगी सिद्ध होता है( भाई राजीवदीक्षित जी के अनुभव व सलाह से एक महिला का कैंसर ग्रसित स्तन का जख्म पूर्णतः ठीक हो गया था )
  35 नयन रोग व कान के रोग में लाभकारी
36 हर स्वस्थ व अस्वस्थ इंसान को नियमित गौमुत्र का सेवन करना चाहिये इससे शरीर में स्फूर्ति,भूख व रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ता है व रक्त का दबाब सामान्य रहता है।

स्वस्थ भारत समृद्ध भारत निर्माण में एक पहल
भाई राजीवदीक्षित जी को समर्पित
  वन्देमातरम जय गौमाता

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*कचनार की छाल में अर्बुद (ट्यूमर) को नष्ट करने की अद्भुत क्षमता है*
(विभिन्न सोर्स से किया गया संकलन आपके समक्ष पेश क़र रहा हूँ)
कचनार का सेवन अमृत के समान गुणकारी सिद्ध होता है।
गाँठ किसी भी तरह की हो –
शरीर के किसी भी हिस्से में उठने वाली कोई भी गठान या रसौली एक असामान्य लक्षण है जिसे गंभीरता से लेना आवश्यक है। ये गठानें पस या टीबी से लेकर कैंसर तक किसी भी बीमारी की सूचक हो सकती हैं। गठान अथवा ठीक नहीं होने वाला छाला व असामान्य आंतरिक या बाह्य रक्तस्राव कैंसर के लक्षण हो सकते हैं।
ज़रूरी नहीं कि शरीर में उठने वाली हर गठान कैंसर ही हो। अधिकांशतः कैंसर रहित गठानें किसी उपचार योग्य साधारण बीमारी की वजह से ही होती हैं लेकिन फिर भी इस बारे में सावधानी बरतनी चाहिए। इस प्रकार की किसी भी गठान की जाँच अत्यंत आवश्यक है ताकि समय रहते निदान और इलाज शुरू हो सके।
चूँकि लगभग सारी गठानें शुरू से वेदना हीन होती हैं इसलिए अधिकांश व्यक्ति नासमझी या ऑपरेशन के डर से डॉक्टर के पास नहीं जाते। साधारण गठानें भले ही कैंसर की न हों लेकिन इनका भी इलाज आवश्यक होता है। उपचार के अभाव में ये असाध्य रूप ले लेती हैं, परिणाम स्वरूप उनका उपचार लंबा और जटिल हो जाता है। कैंसर की गठानों का तो शुरुआती अवस्था में इलाज होना और भी ज़रूरी होता है। कैंसर का शुरुआती दौर में ही इलाज हो जाए तो मरीज के पूरी तरह ठीक होने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।
आपके शरीर मे कहीं पर भी किसी भी किस्म की गांठ हो। उसके लिए है ये चिकित्सा चाहे किसी भी कारण से हो सफल जरूर होती है। कैंसर मे भी लाभदायक है।
आप ये दो चीज पंसारी या आयुर्वेद दवा की दुकान से ले ले:-
कचनार की छाल
गोरखमुंडी
वैसे यह दोनों जड़ी बूटी बेचने वाले से मिल जाती हैं पर यदि  कचनार की छाल ताजी ले तो अधिक लाभदायक है। कचनार (Bauhinia purpurea) का पेड़ हर जगह आसानी से मिल जाता है।
इसकी सबसे बड़ी पहचान है – सिरे पर से काटा हुआ पत्ता । इसकी शाखा की छाल ले। तने की न ले। उस शाखा (टहनी) की छाल  ले जो 1 इंच से 2 इंच तक मोटी हो । बहुत पतली या मोटी टहनी की छाल न ले।
गोरखमुंडी का पौधा आसानी से नहीं मिलता इसलिए इसे जड़ी बूटी बेचने वाले से खरीदे ।
केसे प्रयोग करे :-
कचनार की ताजी छाल 25-30 ग्राम (सुखी छाल 15 ग्राम ) को मोटा मोटा कूट ले। 1 गिलास पानी मे उबाले। जब 2 मिनट उबल जाए तब इसमे 1 चम्मच गोरखमुंडी (मोटी कुटी या पीसी हुई ) डाले। इसे 1 मिनट तक उबलने दे। छान ले। हल्का गरम रह जाए तब पी ले। ध्यान दे यह कड़वा है परंतु चमत्कारी है। गांठ कैसी ही हो, प्रोस्टेट बढ़ी हुई हो, जांघ के पास की गांठ हो, काँख की गांठ हो गले के बाहर की गांठ हो , गर्भाशय की गांठ हो, स्त्री पुरुष के स्तनो मे गांठ हो या टॉन्सिल हो, गले मे थायराइड ग्लैण्ड बढ़ गई हो (Goiter) या LIPOMA (फैट की गांठ ) हो लाभ जरूर करती है। कभी भी असफल नहीं होती। अधिक लाभ के लिए दिन मे 2 बार ले। लंबे समय तक लेने से ही लाभ होगा। 20-25 दिन तक कोई लाभ नहीं होगा निराश होकर बीच मे न छोड़े।
गाँठ को घोलने में कचनार पेड़ की छाल बहुत अच्छा काम करती है. आयुर्वेद में कांचनार गुग्गुल इसी मक़सद के लिये दी जाती है जबकि ऐलोपैथी में ओप्रेशन के सिवाय कोई और चारा नहीं है.
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पपीता पपीता पपीता
वाह रे पपीता
पपीते के पत्तो की चाय किसी भी स्टेज के कैंसर को सिर्फ 60 से 90 दिनों में कर देगी जड़ से खत्म,
पपीते के पत्ते 3rd और 4th स्टेज के कैंसर को सिर्फ 35 से 90 दिन में सही कर सकते हैं।
अभी तक हम लोगों ने सिर्फ पपीते के पत्तों को बहुत ही सीमित तरीके से उपयोग किया होगा, बहरहाल प्लेटलेट्स के कम हो जाने पर या त्वचा सम्बन्धी या कोई और छोटा मोटा प्रयोग, मगर आज जो हम आपको बताने जा रहें हैं, ये वाकई आपको चौंका देगा, आप सिर्फ 5 हफ्तों में कैंसर जैसी भयंकर रोग को जड़ से ख़त्म कर सकते हैं।
ये प्रकृति की शक्ति है और बलबीर सिंह शेखावत जी की स्टडी है जो वर्तमान में as a Govt. Pharmacist अपनी सेवाएँ सीकर जिले में दे रहें हैं।
आपके लिए नित नवीन जानकारी कई प्रकार के वैज्ञानिक शोधों से पता लगा है कि पपीता के सभी भागों जैसे फल, तना, बीज, पत्तिया, जड़ सभी के अन्दर कैंसर की कोशिका को नष्ट करने और उसके वृद्धि को रोकने की क्षमता पाई जाती है।
विशेषकर पपीता की पत्तियों के अन्दर कैंसर की कोशिका को नष्ट करने और उसकी वृद्धि को रोकने का गुण अत्याधिक पाया जाता है। तो आइये जानते हैं उन्ही से।
University of florida ( 2010) और International doctors and researchers from US and japan में हुए शोधो से पता चला है की पपीता के पत्तो में कैंसर कोशिका को नष्ट करने की क्षमता पाई जाती है।
Nam Dang MD, Phd जो कि एक शोधकर्ता है, के अनुसार पपीता की पत्तियां डायरेक्ट कैंसर को खत्म कर सकती है, उनके अनुसार पपीता कि पत्तिया लगभग 10 प्रकार के कैंसर को खत्म कर सकती है जिनमे मुख्य है।
breast cancer, lung cancer, liver cancer, pancreatic cancer, cervix cancer, इसमें जितनी ज्यादा मात्रा पपीता के पत्तियों की बढ़ाई गयी है, उतना ही अच्छा परिणाम मिला है, अगर पपीता की पत्तिया कैंसर को खत्म नहीं कर सकती है लेकिन कैंसर की प्रोग्रेस को जरुर रोक देती है।।
तो आइये जाने पपीता की पत्तिया कैंसर को कैसे खत्म करती है?
1. पपीता कैंसर रोधी अणु Th1 cytokines की उत्पादन को ब़ढाता है जो की इम्यून system को शक्ति प्रदान करता है जिससे कैंसर कोशिका को खत्म किया जाता है।
2. पपीता की पत्तियों में papain नमक एक प्रोटीन को तोड़ने (proteolytic) वाला एंजाइम पाया जाता है जो कैंसर कोशिका पर मौजूद प्रोटीन के आवरण को तोड़ देता है जिससे कैंसर कोशिका शरीर में बचा रहना मुश्किल हो जाता है। 
Papain blood में जाकर macrophages को उतेजित करता है जो immune system को उतेजित करके कैंसर कोशिका को नष्ट करना शुरू करती है, chemotheraphy / radiotheraphy और पपीता की पत्तियों के द्वारा ट्रीटमेंट में ये फर्क है कि chemotheraphy में immune system को दबाया जाता है जबकि पपीता immune system को उतेजित करता है, chemotheraphy और radiotheraphy में नार्मल कोशिका भी प्रभावित होती है पपीता सोर्फ़ कैंसर कोशिका को नष्ट करता है।

सबसे बड़ी बात के कैंसर के इलाज में पपीता का कोई side effect भी नहीं है।।
कैंसर में पपीते के सेवन की विधि :
कैंसर में सबसे बढ़िया है पपीते की चाय। दिन में 3 से 4 बार पपीते की चाय बनायें, ये आपके लिए बहुत फायदेमंद होने वाली है। अब आइये जाने लेते हैं पपीते की चाय बनाने की विधि।

1. 5 से 7 पपीता के पत्तो को पहले धूप में अच्छी तरह सुखा ले फिर उसको छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़ लो आप 500 ml पानी में कुछ पपीता के सूखे हुए पत्ते डाल कर अच्छी तरह उबालें।
इतना उबाले के ये आधा रह जाए। इसको आप 125 ml करके दिन में दो बार पिए। और अगर ज्यादा बनाया है तो इसको आप दिन में 3 से 4 बार पियें। बाकी बचे हुए लिक्विड को फ्रीज में स्टोर का दे जरुरत पड़ने पर इस्तेमाल कर ले। और ध्यान रहे के इसको दोबारा गर्म मत करें।

2. पपीते के 7 ताज़े पत्ते लें इनको अच्छे से हाथ से मसल लें। अभी इसको 1 Liter पानी में डालकर उबालें, जब यह 250 ml। रह जाए तो इसको छान कर 125 ml. करके दो बार में अर्थात सुबह और शाम को पी लें। यही प्रयोग आप दिन में 3 से 4 बार भी कर सकते हैं।
पपीते के पत्तों का जितना अधिक प्रयोग आप करेंगे उतना ही जल्दी आपको असर मिलेगा। और ये चाय पीने के आधे से एक घंटे तक आपको कुछ भी खाना पीना नहीं है।
कब तक करें ये प्रयोग वैसे तो ये प्रयोग आपको 5 हफ़्तों में अपना रिजल्ट दिखा देगा, फिर भी हम आपको इसे 3 महीने तक इस्तेमाल करने का निर्देश देंगे। और ये जिन लोगों का अनुभूत किया है उन लोगों ने उन लोगों को भी सही किया है, जिनकी कैंसर में तीसरी और चौथी स्टेज थी।
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