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रविवार, 26 अगस्त 2018

#पक्षाघात (Paralysis) , Symptoms of #paralysis, पक्षाघात के लक्षण,


                        *पक्षाघात (Paralysis)*
पक्षाघात तब लगता है जब अचानक मस्तिष्क के किसी हिस्से मे रक्त आपूर्ति रुक जाती है या मस्तिष्क की कोई रक्त वाहिका फट जाती है और मस्तिष्क की कोशिकाओं के आस-पास की जगह में खून भर जाता है। जिस तरह किसी व्यक्ति के हृदय में जब रक्त आपूर्ति का आभाव होता तो कहा जाता है कि उसे दिल का दौरा पड़ गया है उसी तरह जब मस्तिष्क में रक्त प्रवाह कम हो जाता है या मस्तिष्क में अचानक रक्तस्राव होने लगता है तो कहा जाता है कि आदमी को "मस्तिष्क का दौरा’’ पड़ गया है।
पक्षाघात में आमतौर पर शरीर के एक हिस्से को लकवा अर्धांगघात मार जाता है। सिर्फ़ चेहरे, या एक बांह या एक पैर या शरीर और चेहरे के पूरे एक पहलू में लकवा मार सकता है या दुर्बलता आ सकती है।

*स्थानिकारकतता (इस्चीनिया):* मस्तिष्क में अपर्याप्त रक्त आपूर्ति की स्थिति में मस्तिष्क की कोशिकाओं के लिए आक्सीजन और पोषण का अभाव स्थानिकारक्तता (स्चीमिया) कहा जाता है। स्थानिकारक्तता की वजह से अंततः व्यत्तिक्रम आ जाता है, यानी मस्तिष्क की कोशिकाएं मर जाती है; और अंततः क्षतिग्रस्त मस्तिष्क में तरल युक्त गुहिका (भग्न या इंफ़ैक्ट) उनकी जगह ले लेती है। जिस व्यक्ति के मस्तिष्क के बायें गोलार्द्ध (हेमिस्फीयर) में पक्षघात लगता है उसके दायें अंग मे लकवा मारता है या अर्धांग होता है और जिस व्यक्ति के मस्तिष्क के दायें हेमिस्फ़ीयर में आघात लगता है उसका बायां अंग अर्धांग का शिकार होता है।

जब मस्तिष्क में रक्तप्रवाह बाधित होता है तो मस्तिष्क की कुछ कोशिकाएं तुरंत मर जाती हैं और शेष कोशिकाओं के मरने का ख़तरा पैदा हो जाता है. समय से दवाइयां देकर क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को बचाया जा सकता है। शोध कत्ताओं ने पता लगा लिया है कि आघात के शुरू होने के तीन घंटे के भीतर खून के थक्कों को घोलने वाले एजेंट टिश्यू प्लाज़्मिनोजेन एक्टिवेटर (टी-पीए) देकर इन कोशिकाओं में रक्त आपूर्ति बहाल की जा सकती है। शुरुआती हमले के बाद शुरू होने वाली क्षति की लहर को रोकने वाली बहुत-सी न्यूरोप्रोटेक्टव दवाइयों पर परीक्षण चल रहे हैं।

मस्तिष्काघात को हमेशा से लाइवाज समझा जाता रहा है। इस नियतिवाद के साथ एक और धारणा जुड़ी थी कि मस्तिष्काघात सिर्फ़ उमरदराज़ लोगों को होता है इसलिए चिंता का विषय नहीं है।

इन भ्रांतियों का ही नतीजा है कि मस्तिष्काघात के औसत मरीज बारह घंटे के इंतज़ार के बाद आपात चिकित्सा कक्ष में पहुंचते हैं। स्वास्थ्य रक्षा सेवाओं के प्रदाता आपात चिकत्सकीय स्थिति मान कर पक्षाघात का इलाज करने के बजाय "सतकर्तापूर्ण प्रतीक्षा’’ का रवैया अख़्तियार करते हैं।

"मस्तिष्क का आघात’’ जैसे शब्द के इस्तेमाल के साथ पक्षाघात को एक निश्चयात्मक-विवरणात्मक नाम मिल गया है। पक्षाघात के शिकार व्यक्ति और चिकित्सकीय समुदाय दोनों की तरफ़ से आपात कार्रवाई मस्तिष्क के दौरे का उपयुक्त जवाब है। जनता का पक्षाघात को मस्तिष्क के दौरे के रूप में लेने और आपात चिकित्सा का सहारा लेने की शिक्षा देना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि पक्षाघात के लक्षण दिखने शुरू होने के क्षण से आपात संपर्क के क्षण तक बीतने वाला हर पल चिकित्सकीय हस्तक्षेप की सीमित संभावना को कम करता जाता है।

                                        *पक्षाघात के लक्षण*

पक्षाघात के लक्षण आसानी से पहचान में आ जाते हैं: आकस्मिक स्तब्धता या कमज़ोरी ख़ासतौर से शरीर के एक हिस्से में; आकस्मिक उलझन या बोलने, किसी की कही बात समझने, एक या दोनों आंखों से देखने में आकस्मिक तकलीफ़, अचानक या सामंजस्य का अभाव, बिना किसी ज्ञात कारण के अचानक सरदर्द या चक्कर आना। चक्कर आने या सरदर्द होने के दूसरे कारणों की पड़ताल के क्रम में भी पक्षाघात का निदान हो सकता। ये लक्षण संकेत देते हैं कि पक्षाघात हो गया है और तत्काल चिकित्सकीय देखभाल की ज़रूरत है। जोख़िम के कारक उच्च रक्तचाप, हृदयरोग, डाइबिटीज़ और धूम्रपान पक्षाघात का जोख़िम पैदा करने वाले सबसे महत्वपूर्ण कारक हैं। इनके अलावा अल्कोहल का अत्यधिक सेवन, उच्च रक्त कॉलेस्टेराल स्तर, नशीली दवाइयों का सेवन, आनुवांशिक या जन्मजात परिस्थितियां, विशेषकर रक्त परिसंचारी तंत्र के विकार।

                                     *शीध्र स्वास्थ्य लाभ*

इस बात की स्पष्ट जानकारी नहीं थी कि मस्तिष्क पक्षाघात या मस्तिष्क के दौरे से होने वाली क्षति की भरपाई कर लेता है। मस्तिष्क की कुछ कोशिकाएं मरी नहीं होती बल्कि क्षतिग्रस्त हुई रहती हैं और फिर से काम करना शुरू कर सकती हैं। कुछ मामलों में मस्तिष्क खुद ही अपने काम-काज का पुनर्संयोजन कर सकता है। कभी-कभार मस्तिष्क का कोई हिस्सा क्षतिग्रस्त हिस्से का काम संभाल लेता है। पक्षाघात के पर्यवेक्षक कई बार उल्लेखनीय और अनपेक्षित स्वास्थ्य लाभ होते देखते हैं जिसकी व्याख्या नहीं की जा सकती।

पुनर्वास पक्षाघात लगने के तुरंत बाद जितनी जल्दी संभव होता है, अस्पताल में ही शुरू हो जाता है। ऐसे मरीजों का पुर्नवास पक्षाघात के दो दिन बाद शुरू होता है जिनकी हालत स्थिर होती है। और अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद भी ज़रूरत के लिहाज़ से उसे जारी रखा जाना चाहिए। पुनर्वास के विकल्पों में किसी अस्पताल की पुनर्वास इकाई, कोई सबएक्यूट केयर यूनिट, कोई पुनर्वास अस्पताल, घरेलू चिकित्सा, अस्पताल के बहिरंग विभाग में देख-रेख, किसी नर्सिंग फैसिलिटी में लंबे समय तक परिचर्या शामिल हो सकती है।

पक्षाघात सोचने, समझने, एकाग्रतास सीखने, फैसले लेने, और याददाश्त की समस्या पैदा कर सकता है। पक्षाघात का मरीज अपने परिवेश से अनजान हो सकता/सकती है या पक्षाघात जन्य मानसिक कमी से भी अनजान हो सकता/सकती है।

पक्षाघात भावनात्मक समस्याएं भी पैदा कर सकता है। पक्षाघात के मरीज़ों को अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने में परेशानी होती है या वे ख़ास स्थितियों में अनुचित भावनाएं व्यक्त कर सकते हैं। बहुत-से पक्षाघात पीड़ितों में होने वाली एक आम विकलांगता है अवसाद...... पक्षाघात की घटना से उत्पन्न आम उदासी से कहीं ज़्यादा पक्षाघात के मरीज दर्द सहते हैं। कष्टकर अवसन्नता या  अजीब-सी अनुभूति का अनुभव कर सकते हैं। ये अनुभूतियां मस्तिष्क के संवेदी हिस्सों को पहुंची क्षति, जोड़ों की जकड़न या हाथ-पैरों की विकलांगता-जैसे बहुत-से कारकों का नतीजा हो सकती हैं।

*क्या है पक्षाघात* 
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अचानक मस्तिष्क के किसी हिस्से मे रक्त आपूर्ति रुकना या मस्तिष्क की कोई रक्त वाहिका फट जाना और मस्तिष्क की कोशिकाओं के आसपास खून भर जाने से स्ट्रोक यानी पक्षाघात होता है।
मस्तिष्क में रक्त प्रवाह कम होने, अचानक रक्तस्राव होने से मस्तिष्क का दौरा पड़ जाता है।
स्ट्रोक को सेरिब्रोवैस्कुलर दुर्घटना या सीवीए के नाम से भी जाना जाता है।
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                  *पक्षाघात के प्रभाव*
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पक्षाघात के कारण दीर्घकालीन विकलांगता हो सकती है। या फिर हाथ-पांव काम करना बंद कर सकते है।
15 से 59 आयुवर्ग में मृत्यु का पांचवां सबसे बड़ा कारण है। 
रोगी को देखने, बात करने या बातों को समझने यहां तक की खाना निगलने में भी परेशानी होने लगती हैं।
यदि रोगी की पक्षाघात के दौरान ब्रेन का बहुत बड़ा भाग प्रभावित हुआ है तो श्वास संबंधी समस्याएं भी आ सकती है।
पक्षाघात के कारण अंधता होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
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                *क्यों होता है पक्षाघात*  
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उच्च-रक्तचाप के 30 से 50 आयुवर्ग के रोगियों को स्ट्रोक का जोखिम रहता है।  
मधुमेह के रोगियों में स्ट्रोक का जोखिम 2-3 गुना अधिक रहता है। 
स्मोंकिग, जंक फूड, ज्यादा तैलीय भोजन का आदी होना।
मस्तिष्क की किसी धमनी के संकीर्ण या अवरुद्ध होने के कारण। 
 कॉलेस्टॉ्ल या उच्च रक्त कॉलेस्ट्रोल स्तर।
पौष्टिक आहार न लेना। अधिक मोटापा।
शराब, सिगरेट और तंबाकु का एवं नशीली दवाइयों का सेवन।
शारीरिक सक्रियता न होना।
आनुवांशिक या जन्मजात परिस्थितियां।
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              *लकवा से बचाव के उपाय*
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 फास्ट फूड एवं जंक फूड का सेवन ना करें
 व्यायाम करना ना भूलें
 गिरने या दुर्घटनाओं से बचें
 सहायक उपकरणों का उपयोग करें
 धूम्रपान एवं मदिरा सेवन ना करें

नोक्टुरिया अर्थात रात के समय पेशाब आना, मूत्राशय की नहीं, ह्रदय की कमजोरी का लक्षण नोक्टुरिया वस्तुतः हृदय और मस्तिष्क के रक्त प्रवाह में अवरोध का लक्षण है।


 प्रौढ़ और बुजुर्ग लोगों को सबसे अधिक परेशानीदेह होता है रात को पेशाब करने के लिए बार बार उठना । नींद खराब होने के डर से बुजुर्ग रात को सोने से पहले पानी पीने से कतराते हैं। वे सोचते हैं कि पानी पियेंगे तो पेशाब के लिए बार बार उठना पड़ेगा। वे नहीं जानते कि सोने से पहले या रात को पेशाब करने के बाद पानी नहीं पीना, प्रौढ़ और बुजुर्ग लोगों में अक्सर होने वाले प्रातःकालीन हृदयाघात या पक्षाघात का एक महत्वपूर्ण कारण है। वास्तव में, नोक्टुरिया अर्थात बार बार पेशाब आना मूत्राशय की शिथिलता की समस्या नहीं है, यह बुजुर्गों में आयु के साथ घटने वाली दिल की कार्य क्षमता के कारण होता है, क्योंकि दिल शरीर के निचले भाग से रक्त चूसने में पर्याप्त समर्थ नहीं रहता । 


ऐसी स्थिति में दिन में जब हम खडी स्थिति में होते हैं, रक्त का प्रवाह नीचे की ओर अधिक होता है । यदि दिल कमजोर है, तो हृदय में रक्त की मात्रा अपर्याप्त हो जाती है और शरीर के निचले भाग पर दबाव बढ़ जाता है, इसीलिए प्रौढ़ और बुजुर्ग लोगों को दिन के समय शरीर के निचले हिस्से में सूजन आ जाती है । जब वे रात में लेटते हैं, तो शरीर के निचले भाग को दबाव से राहत मिलती है और ऊतकों में बहुत सारा पानी जमा हो जाता है। यह पानी खून में वापस आ जाता है। यदि बहुत अधिक पानी है, तो गुर्दे पानी को अलग करने और मूत्राशय से बाहर निकालने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे, यही नोक्टुरिया का कारण है । 


इसलिए आमतौर पर सोने के लिए लेटने के बाद और पहली बार टॉयलेट जाने के बीच में लगभग तीन या चार घंटे लगते हैं। उसके बाद, रक्त में पानी की मात्रा फिर बढ़ने लगती है, तो तीन घंटे बाद फिर से टॉयलेट जाना पड़ता है। 


अब सवाल उठता है कि यह ब्रेन स्ट्रोक या हार्ट अटेक का एक महत्वपूर्ण कारण क्यों है? इसका जबाब यह है कि दो या तीन बार पेशाब के बाद, रक्त में पानी बहुत कम हो जाता है। सांस लेने से भी शरीर का पानी कम होता है। इसके चलते रक्त गाढ़ा और चिपचिपा होने लगता है और नींद के दौरान हृदय गति धीमी हो जाती है। गाढे रक्त और धीमे रक्त प्रवाह के कारण संकुचित रक्त वाहिका आसानी से अवरुद्ध हो जाती है ... 


यही कारण है कि प्रौढ़ और बुजुर्ग लोगों को हमेशा सुबह 5 या 6 बजे के आसपास हृदयाघात या पक्षाघात होता पाया जाता है। इस स्थिति में सोते समय ही मृत्यु हो जाती है।


 हर किसी को बताने के लिए पहली बात यह है कि नोक्टुरिया मूत्राशय की खराबी नहीं है, यह उम्र बढ़ने की समस्या है। हर किसी को बताने के लिए दूसरी बात यह है कि बिस्तर पर जाने से पहले आपको गुनगुना पानी पीना चाहिए, और रात को पेशाब करने के लिए उठने के बाद भी फिर गुनगुना पानी पीना चाहिए। नोक्टुरिया से डरो मत, जबकि पानी न पीना आपकी जान ले सकता है। तीसरी बात यह है कि दिल की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए आपको सामान्य समय में अधिक व्यायाम करना चाहिए।

 

मानव शरीर एक ऐसी मशीन नहीं है, जो ज्यादा इस्तेमाल होने पर खराब हो जाएगी, उलटे यह जितना अधिक इस्तेमाल होगा, उतना ही ज्यादा मजबूत होगा।


अस्वास्थ्यकर भोजन, विशेष रूप से ज्यादा स्टार्च वाले और तले हुए खाद्य पदार्थ न खाएं। 

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