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बुधवार, 5 दिसंबर 2018

Causes of kidney deformity , किडनी विकृति के कारणः

                      *किडनी विकृति के कारणः*


आधुनिक समय में मटर, सेम आदि द्विदलो जैसे प्रोटीनयुक्त आहार का अधिक सेवन, मैदा, शक्कर एवं बेकरी की चीजों का अधिक प्रयोग चाय कॉफी जैसे उत्तेजक पेय, शराब एवं ठंडे पेय, जहरीली आधुनिक दवाइयाँ जैसे – ब्रुफेन, मेगाडाल, आइबुजेसीक, वोवीरॉन जैसी एनालजेसिक दवाएँ, एन्टीबायोटिक्स, सल्फा ड्रग्स, एस्प्रीन, फेनासेटीन, केफीन, ए.पी.सी., एनासीन आदि का ज्यादा उपयोग, अशुद्ध आहार अथवा मादक पदार्थों का ज्यादा सेवन, सूजाक (गोनोरिया), उपदंश (सिफलिस) जैसे लैंगिक रोग, त्वचा की अस्वच्छता या उसके रोग, जीवनशक्ति एवं रोगप्रतिकारक शक्ति का अभाव, आँतों में संचित मल, शारीरिक परिश्रम को अभाव, अत्यधिक शारीरिक या मानसिक श्रम, अशुद्ध दवा एवं अयोग्य जीवन, उच्च रक्तचाप तथा हृदयरोगों में लम्बे समय तक किया जाने वाला दवाओँ का सेवन, आयुर्वेदिक परंतु अशुद्ध पारे से बनी दवाओं का सेवन, आधुनिक मूत्रल (Diuretic) औषधियों का सेवन, तम्बाकू या ड्रग्स के सेवन की आदत, दही, तिल, नया गुड़, मिठाई, वनस्पति घी, श्रीखंड, मांसाहार, फ्रूट जूस, इमली, टोमेटो केचअप, अचार, केरी, खटाई आदि सब गुर्दा-विकृति के कारण है।
सामान्य लक्षणः
गुर्दे खराब होने पर निम्नांकित लक्षण दिखाई देते हैं-

*आधुनिक विज्ञान के अनुसारः*

आँख के नीचे की पलकें फूली हुई, पानी से भरी एवं भारी दिखती हैं। जीवन में चेतनता, स्फूर्ति तथा उत्साह कम हो जाता है। सुबह बिस्तर से उठते वक्त स्फूर्ति के बदले उबान, आलस्य एवं बेचैनी रहती है। थोड़े श्रम से ही थकान लगने लगती है। श्वास लेने में कभी-कभी तकलीफ होने लगती है। कमजोरी महसूस होती है। भूख कम होती जाती है। सिर दुखने लगता है अथवा चक्कर आने लगते हैं। कइयों का वजन घट जाता है। कइयों को पैरों अथवा शरीर के दूसरे भागों पर सूजन आ जाती है, कभी जलोदर हो जाता है तो कभी उलटी-उबकाई जैसा लगता है। रक्तचाप उच्च हो जाता है। पेशाब में एल्ब्यमिन पाया जाता है।

*आयुर्वेद के अनुसारः*

सामान्य रूप से शरीर के किसी अंग में अचानक सूजन होना, सर्वांग वेदना, बुखार, सिरदर्द, वमन, रक्ताल्पता, पाण्डुता, मंदाग्नि, पसीने का अभाव, त्वचा का रूखापन, नाड़ी का तीव्र गति से चलना, रक्त का उच्च दबाव, पेट में किडनी के स्थान का दबाने पर पीड़ा होना, प्रायः बूँद-बूँद करके अल्प मात्रा में जलन व पीड़ा के साथ गर्म पेशाब आना, हाथ पैर ठंडे रहना, अनिद्रा, यकृत-प्लीहा के दर्द, कर्णनाद, आँखों में विकृति आना, कभी मूर्च्छा और कभी उलटी होना, अम्लपित्त, ध्वजभंग (नपुंसकता), सिर तथा गर्दन में पीड़ा, भूख नष्ट होना, खूब प्यास लगना, कब्जियत होना – जैसे लक्षण होते हैं। ये सभी लक्षण सभी मरीजों में विद्यमान हों यह जरूरी नहीं।

गुर्दा रोग से होने वाले *अन्य उपद्रवः*

गुर्दे की विकृति का दर्द ज्यादा समय तक रहे तो उसके कारण मरीज को श्वास (दमा), हृदयकंप, न्यूमोनिया, प्लुरसी, जलोदर, खाँसी, हृदयरोग, यकृत एवं प्लीहा के रोग, मूर्च्छा एवं अंत में मृत्यु तक हो सकती है। ऐसे मरीजों में ये उपद्रव विशेषकर रात्रि के समय बढ़ जाते हैं।
आज की एलोपैथी में गुर्दो रोग का सरल व सुलभ उपचार उपलब्ध नहीं है, जबकि आयुर्वेद के पास इसका सचोट, सरल व सुलभ इलाज है।
आहारः प्रारंभ में रोगी को 3-4 दिन का उपवास करायें अथवा मूँग या जौ के पानी पर रखकर लघु आहार करायें। आहार में नमक बिल्कुल न दें या कम दें। नींबू के शर्बत में शहद या ग्लूकोज डालकर 15 दिन तक दिया जा सकता है। चावल की पतली घेंस या राब दी जा सकती है। फिर जैसे-जैसे यूरिया की मात्रा क्रमशः घटती जाय वैसे-वैसे, रोटी, सब्जी, दलिया आदि दिया जा सकता है। मरीज को मूँग का पानी, सहजने का सूप, धमासा या गोक्षुर का पानी चाहे जितना दे सकते हैं। किंतु जब फेफड़ों में पानी का संचय होने लगे तो उसे ज्यादा पानी न दें, पानी की मात्रा घटा दें।  
*विहारः* गुर्दे के मरीज को आराम जरूर करायें। सूजन ज्यादा हो अथवा यूरेमिया या मूत्रविष के लक्षण दिखें तो मरीज को पूर्ण शय्या आराम (Complete Bed Rest) करायें। मरीज को थोड़े परम एवं सूखे वातावरण में रखें। हो सके तो पंखे की हवा न खिलायें। तीव्र दर्द में गरम कपड़े पहनायें। गर्म पानी से ही स्नान करायें। थोड़ा गुनगुना पानी पिलायें।
औषध-उपचारः गुर्दे के रोगी के लिए कफ एवं वायु का नाश करने वाली चिकित्सा लाभप्रद है। जैसे कि स्वेदन, वाष्पस्नान (Steam Bath), गर्म पानी से कटिस्नान (Tub Bath)।
रोगी को आधुनिक तीव्र मूत्रल औषधि न दें क्योंकि लम्बे समय के बाद उससे गुर्दे खराब होते हैं। उसकी अपेक्षा यदि पेशाब में शक्कर हो या पेशाब कम होता हो तो नींबू का रस, सोडा बायकार्ब, श्वेत पर्पटी, चन्द्रप्रभा, शिलाजीत आदि निर्दोष औषधियों या उपयोग करना चाहिए। गंभीर स्थिति में रक्त मोक्षण (शिरा मोक्षण) खूब लाभदायी है किंतु यह चिकित्सा मरीज को अस्पताल में रखकर ही दी जानी चाहिए।
सरलता से सर्वत्र उपलब्ध पुनर्नवा नामक वनस्पति का रस, काली मिर्च अथवा त्रिकटु चूर्ण डालकर पीना चाहिए। कुलथी का काढ़ा या सूप पियें। रोज 100 से 200 ग्राम की मात्रा में गोमूत्र पियें। पुनर्नवादि मंडूर, दशमूल, क्वाथ, पुनर्नवारिष्ट, दशमूलारिष्ट, गोक्षुरादि क्वाथ, गोक्षुरादि गूगल, जीवित प्रदावटी आदि का उपयोग दोषों एवं मरीज की स्थिति को देखकर बनना चाहिए।
रोज 1-2 गिलास जितना लौहचुंबकीय जल (Magnetic Water) पीने से भी गुर्दे के रोग में लाभ होता है।
शय्यामूत्र का इलाज
जामुन की गुठली को पीसकर चूर्ण बना लो। इस चूर्ण की एक चम्मच मात्रा पानी के साथ देने से लाभ होता है।
रात को सोते समय प्रतिदिन छुहारे खिलाओ।
200 ग्राम गुड़ में 100 ग्राम काले तिल एवं 50 ग्राम अजवायन मिलाकर 10-10 ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार चबाकर खाने से लाभ होता है।
रात्रि को सोते समय दो अखरोट की गिरी एवं 20 किशमिश 15-20 दिन तक निरन्तर देने से लाभ होता है।
सोने से पूर्व शहद का सेवन करने से लाभ होता है। रात को भोजन के बाद दो चम्मच शहद आधे कप पानी में मिलाकर पिलाना चाहिए। यदि बच्चे की आयु छः वर्ष हो तो शहद एक चम्मच देना चाहिए। इस प्रयोग से मूत्राशय की मूत्र रोकने की शक्ति बढ़ती है।
पेट में कृमि होने पर भी बालक शय्या पर मूत्र कर सकता है। इसलिए पेट के कृमि का इलाज करायें ।


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