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शनिवार, 5 जून 2021

उत्तम स्वास्थ्य और जीवन के लिए ध्यान योग

 उत्तम स्वास्थ्य और जीवन के लिए ध्यान योग, जानिए ध्यान योग के लाभ और कायदे


स्वस्थ जीवन जीने और मानव जीवन की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए एक परिपूर्ण और सार्थक जीवन शैली अपनाना आवश्यक है । ध्यान योग वो पद्धति है जिससे आत्मा को परमात्मा के साथ युक्तिसंगत बनाकर जीवन की सार्थकत सिद्ध की जा सकती है । ध्यान योग के निम्न चरण है

I. प्रथम चरण – श्वास पर मन को एकाग्र करने की विधियाँ

II. द्वितीय चरण – पांच ज्ञानेंद्रियों के निग्रह की क्रियाएँ

III. तृतीय चरण – अंतरंग योग की साधना ध्यान की चरम स्थिति

पूर्व विवेचन में हमने ध्यान योग के तीन प्रमुख चरण बताए हुए प्रथम चरण श्वास और मन की संगतता और नियंत्रण पर चर्चा की आज हम इसके द्वितीय चरण पर चर्चा करेंगे।

द्वितीय चरण – पांच ज्ञानेंद्रियों के निग्रह की क्रियाएँ
इस चरण में आपकी ज्ञानेन्द्रियो पर नियंत्रण करना प्रमुख है जो कि निम्न प्रकार है।

(1) कानों पर नियंत्रण
(2) जिह्वा पर नियंत्रण
(3) नाक पर नियंत्रण
(4) आंख पर नियंत्रण
(5) त्वचा (चर्म) पर नियंत्रण

इन पाँच ज्ञानेंद्रियों को नियंत्रण में रखने की क्रियाओं का विवरण इस द्वितीय चरण का मुख्य विषय है। कान, जिह्वा, नाक, आँख तथा चर्म, ये पाँच ज्ञानेंद्रियाँ हैं। इन्हें नियंत्रण में रखना आवश्यक है।

एक-एक ज्ञानेंद्रिय को नियंत्रण में रखने का प्रयास करें तो धीरे-धीरे सफलता मिलेगी| साथ ही साथ वह ज्ञानेंद्रिय अपने काम में परिपक्वता प्राप्त करेगी। इससे मानसिक हलचल दूर होगी।

आज हम इसके प्रथम खंड का अध्धयन करेंगे

(1) कानों पर नियंत्रण

कानों का काम सुनना है। कोई ध्वनि बार-बार कानों को सुनाई पड़े तो मन की एकाग्रता भंग होगी। परन्तु मन का नियंत्रण कानों पर हो जाये तो मन जो सुनना चाहेगा, वही कान सुनेंगे। उदाहरण के लिये हम कोई मनपसंद गाना सुनते रहते हैं या मन पंसद व्यक्तियों से बातें करते रहते है, तब हमारे कान अन्य ध्वनियाँ नहीं सुनेंगें। इससे स्पष्ट है कि कानों को हम वश में रख सकते हैं।

कानो पर नियंत्रण के लाभ

वैचारिक क्रियाओं को बेहतर तरीके से क्रियान्वित करने में सहायता मिलती है।

श्रवण शक्ति भी बढ़ेगी।

कर्ण विकारों को दूर करने में आसानी होगी

एकाग्रता में वृद्धि होगी

महत्वपूर्ण विषय के छूटने के भय नही होगा

दीर्घ प्रयास करें तो ब्रह्मनाद सुनायी पड़ेगा।

कानो पर नियंत्रण की विधि

इसके लिए निम्नलिखित 6 विधियों को आचरण में लाना चाहिए।

(1) पहली विधि –
यह क्रिया सीधे बैठ कर करें। नाक के द्वारा जल्दी-जल्दी साँस लेते और छोड़ते हुए भस्त्रिका की भांति नाक में बड़ी ध्वनि करें। मात्र वही ध्वनि सुनें। दूसरी ध्वनि न सुनें। आरंभ में एक से दो मिनट यह क्रिया करें।

(2) दूसरी विधि –
सीधे बैठ कर धीरे-धीरे गहरी लंबी साँस नाक से लेते तथा छोड़ते हुए बड़ी ध्वनि करें। मात्र वही ध्वनि दो तीन मिनट सुनते रहें।

(3) तीसरी विधि –
यह सूक्ष्म क्रिया है। सामान्य ढंग से साँस लेते और छोड़ते रहें। इससे संबंधित कोई ध्वनि कानों को सुनायी नहीं देगी। नि:शब्द चलते इन श्वास-प्रश्वासों पर मन को एकाग्र करें। श्वास-प्रश्वास की बड़ी सूक्ष्म ध्वनि मन के द्वारा सुनने की अनुभूति प्राप्त करें। दूसरी कोई ध्वनि न सुनें।

(4) चौथी विधि –
हमारे आस-पास हमेशा कई ध्वनियाँ सुनायी पड़ती हैं। ऊँची और धीमी उन ध्वनियों को सुनते रहें। उनमें से किसी एक ध्वनि को पूरी एकाग्रता से 2 से 5 सेकंड तक सुनते रहें। एक के बाद एक ध्वनि इसी प्रकार एकाग्रता से सुनते रहें। जो ध्वनि सुन रहे हैं, केवल वही एक ध्वनि सुनें। अन्य ध्वनियों की उपेक्षा करें |

(5) पाँचवीं विधि –
आसपास की ध्वनियाँ सुनना बंद करें। केवल दूर से आती जाती ध्वनि मात्र, अर्थात् मोटर, हवाई जहाज तथा रेल आदि की ध्वनियों में से मात्र कोई एक ध्वनि 10 सेकंड तक सुनते रहें। एक-एक ध्वनि एक-एक करके ही सुनें। यह कठिन क्रिया है। धीरे-धीरे प्रयास करते हुए इस क्रिया में सफलता प्राप्त करें।

(6) छठी विधि –
दोनों कानों में दोनों अंगूठे रखें। बाहरी कोई ध्वनि सुनाई न दे। हृदय से निकलने वाली दिव्य ध्वनि सुनने का प्रयास करें। आरंभ में गुंजन जैसी ध्वनि सुनायी पड़ेगी। उसमें लीन होकर उसमें निहित दिव्य ध्वनि सुनें| प्रयास कर इस प्रक्रिया में सफलता प्राप्त करें। आरंभ में 2 से 5 मिनट यह क्रिया करें।

उपर्युक्त छ: विधियों द्वारा कानों को नियंत्रित किया जा सकता है।

अगले भाग में हम इसी कड़ी की अगले खंड जिव्हा के नियंत्रण पर चर्चा करेंगे

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