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शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

योग क्या है ?


  *योग क्या है ??* 
आत्मा और परमात्मा के मिलन को योग बोलते हैं अर्थात हमारे अंदर दिव्य-शक्तियां उत्पन्न करने वाली क्रिया ही योग है। योगग्रंथ में योग के 8 अंगों को बताया गया है। आत्मा को ईश्वर से संबंध स्थापित करने के लिए मन की चंचलता को रोक कर, उसे नियंत्रित कर, उसे एकाग्रता प्रदान करते हुए समाधि को प्राप्त कर लेना ही योग कहलाता है।
योग के सात प्रकार हैं--
1. कर्म योग
2. राज योग
3. हठयोग
4. भक्ति योग
5. कुण्डिलिनी योग
6. मंत्र योग
7. ज्ञान योग।
योग क्रिया के अभ्यास में यम का पालन करना आवश्यक होता है। यम की मुख्य 5 क्रियाएं हैं--
1. अहिंसा अर्थात किसी भी प्राणी को मन, वाणी एवं शरीर से कष्ट नहीं देना
2. सत्य बोलना और किसी से छल-कपट नहीं करना
3. चोरी नहीं करना
4. संयम रखना
5. ब्रह्मचर्य।
योगाभ्यास के लिए 5 नियम हैं--
1. शौच
2. संतोष
3. तपस
4. स्वाध्याय
5. सिद्धांत।
योग के आठ अंग होते हैं :
यम, नियम, प्रत्याहार, आसन, प्राणायाम, धारणा, ध्यान, समाधि।
इन सभी को मिला कर योग बनता है।
आसन से हमारा शरीर स्वस्थ होता है। प्राणायाम से हमारे शरीर में रजिस्टेंश पॉवर बढ़ती है। इससे इतनी रजिस्टेंश पॉवर आ जाती है कि बाहर का रोग  अंदर आना बंद हो जाता है। प्रत्याहार में हम अपनी पांचों ज्ञानेन्द्रियों को नियंत्रित करने का अभ्यास करते हैं, जैसे- आंख देखने के लिए, कान सुनने के लिए, नाक सूंघने के लिए, जीभ स्वाद लेने के लिए और त्वचा स्पर्श करने के लिए होती है।
अब हमें इन पर नियंत्रण करना है--
उदाहरण के लिए--पेट भरा हुआ है लेकिन सामने रसगुल्ला पड़ा हुआ है और हम स्वाद में खाते जा रहे हैं। हम ये नहीं देख रहे कि यह कितना नुक्सान करेगा। इसका अर्थ है जीभ पर हमारा नियंत्रण नहीं है। धारणा में हम अपने को कॉनंस्ट्रेट करना सीखते हैं। यदि हमने अपने जीवन का कोई टारगेट बना लिया तो हम उसके अनुसार कार्य करते जाएंगे और सफल होते जाएंगे। इसके द्वारा हम अपने जीवन की प्लानिंग करते हुए आगे बढ़ते रहेंगे। ध्यान में हम अपने मन को अपनी मर्जी से एक स्थान पर केन्द्रित करने का अभ्यास करते हैं। यहां हम अपने मन को भटकने से रोकने की शक्ति पाते हैं। हम जहां चाहे वहां अपने ध्यान को केन्द्रित कर सकते हैं। इससे स्मरण शक्ति बढ़ती है, नर्वस-सिस्टम ठीक से कार्य करता है एवं सोचने-समझने की क्षमता बढ़ती है। दिमाग में नए-नए प्लान आते रहते हैं। ध्यान का अंतिम रूप समाधि है।
ये आठों मिला कर योग कहलाते हैं।
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[23/06, 4:44 PM] 100: ‘शब्द’ को ब्रह्म कहा है, क्योंकि ईश्वर और जीव को एक श्रृंखला में बाँधने का काम शब्द के द्वारा ही होता है। सृष्टि की उत्पत्ति का प्रारम्भ भी शब्द से हुआ है। पञ्चतत्त्वों में सबसे पहले आकाश बना, आकाश की तन्मात्रा शब्द है। अन्य समस्त पदार्थों की भाँति शब्द भी दो प्रकार का है—सूक्ष्म और स्थूल। सूक्ष्म शब्द को विचार कहते हैं और स्थूल शब्द को नाद। ब्रह्मलोक से हमारे लिए ईश्वरीय शब्द-प्रवाह सदैव प्रवाहित होता है। ईश्वर हमारे साथ वार्तालाप करना चाहता है, पर हममें से बहुत कम लोग ऐसे हैं, जो उसे सुनना चाहते हैं या सुनने की इच्छा करते हैं। ईश्वरीय शब्द निरन्तर एक ऐसी विचारधारा प्रेरित करते हैं जो हमारे लिए अतीव कल्याणकारी होती है, उसको यदि सुना और समझा जा सके तथा उसके अनुसार मार्ग निर्धारित किया जा सके तो निस्सन्देह जीवनोद्देश्य की ओर द्रुतगति से अग्रसर हुआ जा सकता है। यह विचारधारा हमारी आत्मा से टकराती है। हमारा अन्त:करण एक रेडियो है, जिसकी ओर यदि अभिमुख हुआ जाए, अपनी वृत्तियों को अन्तर्मुख बनाकर आत्मा में प्रस्फुटित होने वाली दिव्य विचार लहरियों को सुना जाए, तो ईश्वरीय वाणी हमें प्रत्यक्ष में सुनाई पड़ सकती है, इसी को आकाशवाणी कहते हैं। हमें क्या करना चाहिए, क्या नहीं? हमारे लिए क्या उचित है, क्या अनुचित? इसका प्रत्यक्ष सन्देश ईश्वर की ओर से प्राप्त होता है। अन्त:करण की पुकार, आत्मा का आदेश, ईश्वरीय सन्देश, आकाशवाणी, तत्त्वज्ञान आदि नामों से इसी विचारधारा को पुकारते हैं। अपनी आत्मा के यन्त्र को स्वच्छ करके जो इस दिव्य सन्देश को सुनने में सफलता प्राप्त कर लेते हैं, वे आत्मदर्शी एवं ईश्वरपरायण कहलाते हैं। ईश्वर उनके लिए बिलकुल समीप होता है, जो ईश्वर की बातें सुनते हैं और अपनी उससे कहते हैं। इस दिव्य मिलन के लिए हाड़-मांस के स्थूल नेत्र या कानों का उपयोग करने की आ��

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