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मंगलवार, 22 सितंबर 2020

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सिद्धासन का महत्व और लाभ
 
सिद्धासन के अभ्यास से शरीर की समस्त नाड़ियों का शुद्धिकरण होता है। प्राणतत्त्व स्वाभाविकतया ऊर्ध्वगति को प्राप्त होता है। फलतः मन को एकाग्र करना सरल बनता है।

पाचनक्रिया नियमित होती है। श्वास के रोग, हृदय रोग, जीर्णज्वर, अजीर्ण, अतिसार, शुक्रदोष आदि दूर होते हैं। मंदाग्नि, मरोड़ा, संग्रहणी, वातविकार, क्षय, दमा, मधुप्रमेह, प्लीहा की वृद्धि आदि अनेक रोगों का प्रशमन होता है। पद्मासन के अभ्यास से जो रोग दूर होते हैं वे सिद्धासन के अभ्यास से भी दूर होते हैं।

ब्रह्मचर्य-पालन में यह आसन विशेष रूप से सहायक होता है। विचार पवित्र बनते हैं। मन एकाग्र होता है। सिद्धासन का अभ्यासी भोग-विलास से बच सकता है। 72 हजार नाड़ियों का मल इस आसन के अभ्यास से दूर होता है। वीर्य की रक्षा होती है। स्वप्नदोष के रोगी को यह आसन अवश्य करना चाहिए।

योगीजन सिद्धासन के अभ्यास से वीर्य की रक्षा करके प्राणायाम के द्वारा उसको मस्तिष्क की ओर ले जाते हैं जिससे वीर्य ओज तथा मेधाशक्ति में परिणत होकर दिव्यता का अनुभव करता है। मानसिक शक्तियों का विकास होता है।

कुण्डलिनी शक्ति जागृत करने के लिए यह आसन प्रथम सोपान है।

सिद्धासन में बैठकर जो कुछ पढ़ा जाता है वह अच्छी तरह याद रह जाता है। विद्यार्थियों के लिए यह आसन विशेष लाभदायक है। जठराग्नि तेज होती है। दिमाग स्थिर बनता है जिससे स्मरणशक्ति बढ़ती है।

आत्मा का ध्यान करने वाला योगी यदि मिताहारी बनकर बारह वर्ष तक सिद्धासन का अभ्यास करे तो सिद्धि को प्राप्त होता है। सिद्धासन सिद्ध होने के बाद अन्य आसनों का कोई प्रयोजन नहीं रह जाता। सिद्धासन से केवल या केवली कुम्भक सिद्ध होता है। छः मास में भी केवली कुम्भक सिद्ध हो सकता है और ऐसे सिद्ध योगी के दर्शन-पूजन से पातक नष्ट होते हैं, मनोकामना पूर्ण होती है। सिद्धासन के प्रताप से निर्बीज समाधि सिद्ध हो जाती है। मूलबन्ध, उड्डीयान बन्ध और जालन्धर बन्ध अपने आप होने लगते हैं।

सिद्धासन योग करने की विधि
सिद्धासन में बैठने की विधि
सबसे पहले जमीन पर चटाई बिछा कर पैरो को सीधा करके बैठ जाये |

अब बांये पैर को मोड़े और पैर की एड़ी को गुदा मुख और यौन अंगो के मध्य  रखे |

अब दांये पैर को मोड़े और इसकी एड़ी को यौन अंगो के ऊपर रखे |

हाथो को ज्ञानमुद्रा के रूप में पैरो पर रखे |

कुछ देर इसी तरह रहने दे , साँसे सामान्य रखे

अब पैरो का क्रम बदलकर पुनः यही करे |

सिद्धासन के लिए सावधानियां

सिद्धासन को बलपूर्वक नहीं करना चाहिए।

यह आसन शांत एवं आराम भाव से करना चाहिए।

अगर घुटने में दर्द हो तो कुछ समय के लिए इस आसन को करने से बचें।

उनको भी इस आसन को नहीं करनी चाहिए जिन्हें कमर दर्द की शिकायत हो।

सिद्धासन महापुरूषों का आसन है। सामान्य व्यक्ति हठपूर्वक इसका उपयोग न करें, अन्यथा लाभ के बदले हानि होने की सम्भावना है।

सिद्धासन जैसा दूसरा आसन नहीं है, केवली कुम्भक के समान प्राणायाम नहीं है, खेचरी मुद्रा के समान अन्य मुद्रा नहीं है और अनाहत नाद जैसा कोई नाद नहीं है।


वक्रासन क्या है

 हिंदी के वक्र शब्द से लिया गया है वक्र का अर्थ होता है मुड़ा हुआ या "टेढ़ा" वक्रासन करते समय हमारी रीढ़ की हड्डी टेढ़ी हो जाती है इसी कारण इस आसन का नाम वक्रासन पड़ा वक्रासन बहुत ही सरलता से सीखा जा सकता है वक्रासन करने के बहुत से अनेकों लाभ हैं वक्रासन करने से पीठ हड्डी मजबूत होती है और डिप्रेशन दूर होता है

वक्रासन करने से लाभ

वक्रासन मधुमेह और डायबिटीज वाले व्यक्तियों के लिए बहुत ही उत्तम आसन है

 वक्रासन करते समय हमारे पेनक्रियाज पर बल लगता है जिससे पेनक्रियाज इंसुलिन सही मात्रा में रिसाव करता है

वेट संतुलन बनाए रखता है

इस आसन के लगातार अभ्यास करने से पेट की चर्बी कम हो जाती है शरीर में सबसे ज्यादा चर्बी पेट पर होती है

रीड की हड्डी को मजबूत बनाता है वक्रासन रीड की हड्डी के लिए रामबाण आसन है

शरीर में लचीलापन आता है
 
वक्रासन के निरंतर अभ्यास से हमारे शरीर में तंत्रिका तंत्र मजबूत हो जाता है और स्फूर्ति प्रदान करता है

इसके साथ साथ गर्दन का दर्द कमर दर्द में भी लाभदायक है

वक्रासन करने की सही विधि

सबसे पहले आप साफ सुथरी जगह पर खुले स्थान में समतल स्थान पर आसन बिछाकर उस पर बैठ जाए

उसके बाद अपने पैरों को सामने की ओर फैला दें पैरों के बीच में कोई गैप नहीं रखे

इसके बाद बाएं पैर को मोडते हुए दाहिने पैर के घुटने के बगल में बाहर कि ओर ले आए

बाये हाथ को पीठ के पीछे 1 फुट की दूरी पर जमीन पर स्पर्श करते हुए रखें

इसके बाद दाहिने हाथ से दाहिने पैर के बाये साइड से हाथ को डालते हुए दाहिने पैर के पास कि जमीन छूने का प्रयास करें

ऐसा करने पर हमारे पेट में खिंचाव होगा

इस स्थिति में सांसों की गति सामान्य रहेगी ।

वक्रासन की मुद्रा बनाई है वैसे ही इस मुद्रा से धीरे धीरे वापस मूल स्वरूप में आ जाए

अब इसी प्रक्रिया को दाहिने पैर से वैसे ही करें

शुरुआत में यह आसन 3 से 5 बार तक करें

वक्रासन करते समय सावधानियां

पेट ,कमर ,कोहनी ,घटना  और गर्दन दर्द वाले व्यक्ति यह आसन नहीं करें!


वृश्चिकासन के लाभ

वृश्चिकासन के अभ्यास से चेहरे की रौनक बढ़ती है।

स्कॉर्पियन पोज़ थायरॉयड ग्रंथियों पर पूरी तरह से काम करता है और उनके कामकाज में सुधार करता है। यह चेहरे की मांसपेशियों की भी मालिश करता है। नतीजतन, गर्दन और चेहरे के क्षेत्र के आसपास की झुर्रियां कम हो जाती हैं।

इसका अभ्यास अनावश्यक जमा चर्बी को गलाकर पेट और शरीर को टोन करता है यह अतिरिक्त पेट वसा से छुटकारा पाने में मदद करता है

यह पेट से जुड़ी समस्याओं से राहत दिलाने में मदद करता है।

वृश्चिकासन के अभ्यास से आपकी पाचन क्रिया सुधरती और भूख न लगने की समस्या ठीक होती है।

कमर व रीढ़ क़ी हड्डी क़ी लचकता और मजबूती में सुधार होता है

हाथो और बाहों क़ी मांसपेशियों को मजबूती मिलती है व आपकी बांह की मांसपेशियों को टोन करता है।

पाँवो और हाथो क़ी हड्डियों और जोड़ो को दर्द से राहत मिलती है
यह आपके पैरों को मजबूत और अच्छी तरह से टोंड रखता है।

यह आपके कूल्हे की मांसपेशियों को भी खींचता है और सिकोड़ता है जैसे कि पेसो, ग्लूटस मैक्सिमस, एडक्टोर आदि।

इसका अभ्यास आपकी पीठ, धड़, पैर, फोरआर्म्स और कंधों को मजबूत करता है। यह आपके छाती और कंधे के क्षेत्र में डायाफ्राम और अन्य मांसपेशियों को फैलता है और फैलाता है।

इस आसन आपकी सहनशक्ति में सुधार करता है।

स्ट्रेस से राहत पाने के लिए भी इस आसन का अभ्यास मददगार साबित होता है।

शारीरिक और मानसिक संतुलन संस्थापन में मदद मिलती है

इस आसन के नियमित अभ्यास से आपके मस्तिष्क की ओर रक्त प्रवाह बढ़ता है, जिससे आपकी याददाश्त और एकाग्रता में सुधार होता है।

यह आपकी ताकत, समन्वय और दृढ़ता को चुनौती देता है।

कहा जाता है कि हमारी गर्दन, कंधे, पीठ और रीढ़ के क्षेत्र में बहुत तनाव होता है। यह आसन उन क्षेत्रों को उत्तेजित करता है और सभी तनाव को मुक्त करता है। यह चिंता को कम करने में भी मदद करता है।

 यह स्पॉन्डिलाइटिस को होने से रोकता है और कड़ी गर्दन के लिए काफी फायदेमंद है।

सक्रिय और संतुलित करता है मुकुट (सहस्रार) चक्र, तीसरी आँख (अजन) चक्र, गला (विशुद्ध) चक्र और दिल (अनाहत) चक्र से ऊर्जावान लाभ

इस आसन खुशी और ऊर्जा को बढ़ावा देता है। इस मुद्रा के अभ्यासी दूसरों के साथ अधिक जुड़ाव महसूस करते हैं और अधिक खुले विचारों वाले हो जाते हैं।

वृश्चिकासन क़ी विधि

सबसे पहले आप किसी दीवार के पास समतल शांत और स्वच्छ भूमि पर नर्म आसन बिछाएं।

फिर दोनों हाथों में कुछ अंतर रखते हुए उनकी हथेलियों को कोहनियों सहित भूमि पर टिका दें। दूसरी ओर दोनों घुटनों को भूमि पर टिकाकर किसी चौपाए की तरह अपनी आकृति बना लें। इस स्थित में आपका मुंह दीवार की ओर रहेगा।

अब सिर को हाथों के बीच टिकाकर पैरों को ऊपर ले जाकर सीधा करते हुए घुटनों से मोड़कर दीवार से टीका दें। अर्थात कोहनियों और हथेलियों के बल पर शीर्षासन करते हुए दोनों पैरों के पंजों को दीवार पर टिका दें।

अब सिर को उठाने का प्रयत्न कर दीवार को देखने का प्रयास करें। दूसरी ओर पैरों को दीवार के सहारे जहां तक संभव हो नीचे सिर की ओर खसकाते जाएं। 20 सेकंड तक इसी स्थिति में रहने के बाद पुन: सामान्य अवस्था में लौट आएं।

वृश्चिकासन की पूर्ण स्थिति में पैरों के पंजे सिर पर टिक जाते हैं। आप इसे दीवार के सहारे शीर्षासन करते हुए भी कर सकते हैं। इससे यह आसन करना आसान होगा।

सावधानियां
कुछ चीजें हैं जो आपको स्कोर्पियन पोज का अभ्यास करते समय ध्यान में रखनी चाहिए। यदि आप कूल्हे की चोट, पीठ से संबंधित समस्याओं, उच्च रक्तचाप और हृदय की स्थिति से पीड़ित हैं, तो यह आसन आपके लिए उपयुक्त नहीं है।

इसके अलावा, यह मुद्रा शुरुआत करने वाले नव योगियों के लिए उपयुक्त नहीं है। उन्नत योगी अवस्था में पहुँचने के बाद ही आपको इसका अभ्यास करना चाहिए। फिर भी यह आपके सख्त मार्गदर्शन में किया जाना चाहिए योग शिक्षक और आपके प्रशिक्षक के बाद आपको आगे जाना है।


नटराजासन के लाभ

शरीर क़ी अकड़ने खत्म हो मांसपेशियों को आराम मिलता है

मन और शरीर मैं गहरी शांति महसूस होती हैं।

रीढ़ की हड्डी में खिंचाव होने से दर्द में मुक्ति मिलती है।

जोड़ो के सही संतुलन व उपयोग से दर्द दूर होता है

नटराजासन क़ी विधि

सर्व प्रथम आप शांत साफ और समतल स्थान पर आसान लगाकर उस पर पीठ के बल लेट कर दोनों हाथो को फैला ले।

हथेली फर्श की ओर रखे और कंधो के समान सीधा रखे।

अब पैर को मोड़ते हुए एड़ी को दूसरे पैर के जंघा के पास लाये।

घुटने आसमान की ओर रखे और गहरी सांस ले। तलवा पूरी तरह ज़मीन को छूते हुए हो

सांस छोड़ते हुए घुंटने को दाई तरफ झुकाये और अपनी बाई तरफ देखे।

सांस लेते रहे और हर सांस के साथ अपने घुटनो और कंधो को ज़मीन की और लाने की कोशिश करे।

ध्यान रखे की कंधे फर्श को छूते रहे। इस अवस्था में अक्सर कंधे फर्श से ऊपर उठ जाते है , इसपर ध्यान रखे।

जांघों, कमर, हाथ, गर्दन, पेट और पीठ में खिंचाव महसूस करें। प्रत्येक सांस छोड़ते हुए आसन में विश्राम करें।

सांस ले और घुंटने को उठाये, ऊपर देखे और सांस छोड़ते हुए घुटनो को बाई तरफ झुकाये और दाई तरफ देखे। इसी अवस्था में रुके और सांस लेते रहे।

धीरे धीरे सर और घुटने को सीधा कर ले। पैरो को फर्श पर सीधा फैला ले।

इस आसन को दूसरी पैर से भी दोहराएं।

नटराजासन में सावधानियां
रीढ़ की हड्डी की चोटों के मामले में इस आसन को न करे।


सर्वांगासन करने का तरीका
इस आसन को करने के लिए पहले आप अपनी पीठ के बल लेट जाएं। इसके बाद एक साथ अपने पैरों, कूल्हे और फिर कमर को उठाएं। इस दौरान आपका सारा भार आपके कंधों पर आ जाएगा। अपनी पीठ को अपने हाथों से सहारा दें। अब अपनी कोहनियों को पास में ले आएं। हाथों को पीठ के साथ रखें, कंधों को सहारा देती रहें। कोहनियों को जमीन पर दबाते हुए और हाथों को कमर पर रखते हुए, अपनी कमर और पैरों को सीधा रखें।
 
इस दौरान आपको ध्यान रखना होगा कि आपके शरीर का पूरा भार आपके कंधों और हाथों के ऊपरी हिस्से पर हो, न कि आपके सिर और गर्दन पर। साथ ही अपने पैरों को सीधा और मजबूत रखें। अपने पैरों की अंगुलियों को नाक की सीध में ले आएं। साथ ही अपनी गर्दन को जमीन पर न दबाएं, उसे मजबूत रखें और उसकी मांस-पेशियों को सिकोड़ कर अपनी छाती को ठोड़ी से लगा लें। यदि गर्दन में तनाव महसूस हो रहा है तो आसन से बाहर आ जाएं। इस आसन के दौरान लंबी गहरी सांसें लेती रहें और 30-60 सेकेंड तक आसन में ही रहें।

आसन से बाहर आने के लिए, घुटनों को धीरे से माथे के पास लेकर आएं। हाथों को जमीन पर रखें। बिना सिर को उठाए धीरे-धीरे कमर को नीचे लेकर आएं। पैरों को जमीन पर लें आएं। कम से कम 60 सेकेंड के लिए आराम करें। इसके बाद आप दोबारा इस आसन को दोहरा सकती हैं।

सर्वांगासन के लाभ
सर्वांगासन करने से थाइरॉयड ग्रंथि पर दबाव बनने लगता है, जिससे ग्रंथि ठीक से काम करने लगती है। लगातार इस आसन का अभ्यास करने से थाइरॉयड की समस्या पूरी तरह से ठीक हो जाती है। इस आसन से पेट पर भी जोर पड़ता है, जिससे पेट की सभी आंतरिक अंग सही तरह से काम करने लगते हैं, जिसकी वजह से बांझपन और गर्भपात जैसी समस्याएं दूर होती हैं। बॉडी में ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होने के कारण मासिक धर्म संबंधी परेशानियां दूर होती हैं। साथ ही थकान और दुर्बलता को दूर करने में भी यह आसन बेहद लाभकारी है
 
इस आसन से मस्तिष्क में रक्त और ऑक्सीजन का प्रवाह बेहतर तरीके से होता है। जिसके कारण हेयर लॉस की समस्या दूर होती है और मानसिक तनाव भी काफी हद तक कम होता है। इस आसन को करने से त्वचा की रंगत निखरने लगती है। यह एक तरह का एंटी-एजिंग और एंटी-रिंकल फार्मूला है। इसे करने से फेस पर कील-मुहांसे नहीं होते और झुर्रियां भी नहीं पड़तीं।

सावधानी और निरूद्धता
अगर आप सर्वांगासन कर रही हैं तो इसके पश्चात् मत्स्यासन का अभ्यास अवश्य करें। अन्यथा आपको इस आसन से कोई विशेष लाभ नहीं होगा और आपको सर्वाइकल पेन होने का डर भी बना रहेगा। अगर आप गर्भवती हैं तो इस आसन को न करें। आसन किसी योग्य प्रशिक्षक से सीखकर ही करें। 



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