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बुधवार, 23 सितंबर 2020

#साइनस (नाक के एक रोग), #Sinus (a disease of the nose) साइनस (Sinus)


1️⃣
🌹साइनस (नाक के एक रोग) 🌹

💎साइनस नाक का एक रोग है। आयुर्वेद में इसे प्रतिशय नाम से जाना जाता है। सर्दी के मौसम में नाक बंद होना, सिर में दर्द होना, आधे सिर में बहुत तेज दर्द होना, नाक से पानी गिरना इस रोग के लक्षण हैं। इसमें रोगी को हल्का बुखार, आंखों में पलकों के ऊपर या दोनों किनारों पर दर्द रहता है।

🌸तनाव, निराशा के साथ ही चेहरे पर सूजन आ जाती है। इसके मरीज की नाक और गले में कफ जमता रहता है। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति धूल और धुवां बर्दाश्त नहीं कर सकता। साइनस ही आगे चलकर अस्थमा, दमा जैसी गंभीर बीमारियों में भी बदल सकता है। इससे गंभीर संक्रमण हो सकता है।

🌼क्या होता है साइनस रोग : साइनस में नाक तो अवरूद्ध होती ही है, साथ ही नाक में कफ आदि का बहाव अधिक मात्रा में होता है। भारतीय वैज्ञानिक सुश्रुत एवं चरक के अनुसार चिकित्सा न करने से सभी तरह के साइनस रोग आगे जाकर 'दुष्ट प्रतिश्याय' में बदल जाते हैं और इससे अन्य रोग भी जन्म ले लेते हैं। जिस तरह मॉर्डन मेडिकल साइंस ने साइनुसाइटिस को क्रोनिक और एक्यूट दो तरह का माना है। आयुर्वेद में भी प्रतिश्याय को नव प्रतिश्याय 'एक्यूट साइनुसाइटिस' और पक्व प्रतिश्याय 'क्रोनिक साइनोसाइटिस' के नाम से जाना जाता है।

🌻आम धारणा यह है कि इस रोग में नाक के अंदर की हड्डी का बढ़ जाती है या तिरछा हो जाती है जिसके कारण श्वास लेने में रुकावट आती है। ऐसे मरीज को जब भी ठंडी हवा या धूल, धुवां उस हड्डी पर टकराता है तो व्यक्ति परेशान हो जाता है।

🌿चिकित्सकों अनुसार साइनस मानव शरीर की खोपड़ी में हवा भरी हुई कैविटी होती हैं जो हमारे सिर को हल्कापन व श्वास वाली हवा लाने में मदद करती है। श्वास लेने में अंदर आने वाली हवा इस थैली से होकर फेफड़ों तक जाती है। इस थैली में हवा के साथ आई गंदगी यानी धूल और दूसरे तरह की गंदगियों को रोकती है और बाहर फेंक दी जाती है। साइनस का मार्ग जब रुक जाता है अर्थात बलगम निकलने का मार्ग रुकता है तो 'साइनोसाइटिस' नामक बीमारी हो सकती है।

⚜️वास्तव में साइनस के संक्रमण होने पर साइनस की झिल्ली में सूजन आ जाती है। सूजन के कारण हवा की जगह साइनस में मवाद या बलगम आदि भर जाता है, जिससे साइनस बंद हो जाते हैं। इस वजह से माथे पर, गालों व ऊपर के जबाड़े में दर्द होने लगता है।

🌱इसका उपाय : इस रोग में सर्दी बनी रहती है और कुछ लोग इसे सामान्य सर्दी समझ कर इसका इलाज नहीं करवाते हैं। सर्दी तो सामान्यतः तीन-चार दिनों में ठीक हो जाती है, लेकिन इसके बाद भी इसका संक्रमण जारी रहता है। अगर वक्त रहते इसका इलाज न कराया जाए तो ऑपरेशन कराना जरूरी हो जाता है। लेकिन इसकी रोकथाम के लिए योग में क्रिया और प्राणायाम को सबसे कारगर माना गया है। नियमित क्रिया और प्राणायाम से बहुत से रोगियों को 99 प्रतिशत लाभ मिला है।

🍵इस रोग में बहुत से लोग स्टीम या सिकाई का प्रयोग करते हैं और कुछ लोग प्रतिदिन विशेष प्राकृतिक चिकित्सा अनुसार नाक की सफाई करते हैं। योग से यह दोनों की कार्य संपन्न होते हैं। प्राणायाम जहां स्टीम का कार्य करता है वही जलनेति और सूत्रनेती से नाक की सफाई हो जाती है। प्रतिदिन अनुलोम विलोम(नाड़ीशोधन) के बाद पांच मिनट का ध्यान करें। जब तक यह करते रहेंगे साइनस से आप कभी भी परेशान नहीं होंगे।

🍲शुद्ध भोजन से ज्यादा जरूरी है शुद्ध जल और सबसे ज्यादा जरूरी है शुद्ध वायु। साइनस एक गंभीर रोग है। यह नाक का इंफेक्शन है। इससे जहां नाक प्रभावित होती है वहीं, फेंफड़े, आंख, कान और मस्तिष्क भी प्रभावित होता है इस इंफेक्शन के फैलने से उक्त सभी अंग कमजोर होते जाते हैं।

🏃‍♂️योग पैकेज :  क्रियाओं में रबड़नेति,सूत्रनेती और जल नेति, कपालभांति,
🤭प्राणायाम में अनुलोम-विलोम(नाड़ीशोधन) और भ्रामरी, भस्त्रिका प्रायाणाम।

❎ दूध,फल,ठण्डा पानी या प्रदार्थ,घी,

✅ तुलसी10, अदरक2gm, हल्दी 1gm गुड़,पानी में गुनगुना पीना

⚖️ 40ml(1time Doze)- 3 time
Right nose बंद करकें मुँह के लार के mix करकें पीना हं जप करतें ।

2️⃣
🔹 सर्व रोगों से रक्षा करनेवाली गिलोय के फायदे जानकर हैरान रह जायेंगे आप 🌹

🔹गिलोय, गुडुच या गुरूच अमृततुल्य गुणकारी रसायन,दिव्य औषधि होने के कारण अमृता कहलाती है | यह सर्व रोगों से रक्षा करनेवाली है |

🔹 इसका ताजा रस विशेष लाभदायी होता है | गिलोय का प्रयोग क्षय, प्रमेह, त्वचाविकार, ज्वर, पांडु व लीवर के रोगों में विशेष लाभदायी है |

🔹 गिलोय का चूर्ण शहद के साथ लेने से ह्रदयरोगियों को फायदा होता है | घी (10 से 15 ग्राम अथार्त एक चम्मच) मिलाकर लेने से वायु शमन होता है | शक्कर (10 ग्राम) के साथ प्रयोग करने से पित्त का तथा शहद (10 से 15 ग्राम) के साथ प्रयोग करने से कफ का शमन होता है |

गिलोय के उपयोग :

🔹गिलोय के रस पीने से मलेरिया तथा पुराना बुखार दूर होता है |

🔹चुटकी भर दालचीनी व लौंग के साथ लेने से मुद्दती बुखार दूर होता है |

🔹बुखार के बाद रहने रहनेवाली कमजोरी में गिलोय का रस पौष्टिक एवं शक्तिप्रदायक है |

🔹2 से 3 ग्राम अधकुटी सोंठ व 25 से 30 ग्राम कूटी हुई ताजी गिलोय का काढ़ा बनाकर पीने से संधिवात तथा आमवात दूर हता है |

🔹गिलोय के रस में मिश्री मिलाकर पीने से पीलिया में लाभ होता है |

🔹गिलोय का रस दीर्घकाल तक लेते रहने से कायमी कब्जी के रोगी को लाभ होता है |

🔹गिलोय के चूर्ण अथवा रस का नियमित उपयोग डायबिटीज़वालों के लिए लाभदायी है | हररोज इंजेक्शन तथा टिकियों कि आवश्यकता नहीं पड़ेगी | उनके कुप्रभावों से रोगी बच जायेगा |

🔹माता को गिलोय का चूर्ण अथवा रस देने से दूध बढ़ता है व दूध के दोष दूर होते है | माता के दूषित दूध के कारण होनेवाले रोगों से बालक कि रक्षा होती है |

🔹गिलोय उत्कृष्ट मेध्य अर्थात बुद्धिवर्धक रसायन है | इसके नियमित सेवन से दीर्घायुष्य, चिरयौवन व कुशाग्र बुद्धि कि प्राप्ति होती है |

🔹सिद्ध योगी गोरखनाथजी कहते है : कुंडलिनी जागरण के समय शरीर में गर्मी महसूस हो तो गिलोय के रस में शहद ठीक प्रकार से मिश्रित करके तृप्तिपूर्वक लिया जाय तो मणिपुर चक्र, नाभि चक्र का शोधन सरलता से हो जाता है|

चूर्ण की मात्रा : 2 से 3 ग्राम |
रस की मात्रा : 20 से 30 मि.लि. |

🔹लोक कल्याण सेतु नवम्बर से दिसम्बर 2007, अंक नंबर 125

3️⃣
🌹पित्त पथरी का घरेलू इलाज

🌹1) सुबह और शाम पथरी चट
पौधे के तीन पत्तों को धो के रोज सुबह और शाम को खाली पेट मे चबा चबा कर खा ले ऊपर से थोड़ा पानी पी ले ( 3 सुबह और 3 शाम) ऐसा लगातार 20-25 दिनों तक करें, यकीन मानिए आपके शरीर में बन रही पथरी टूटकर बाहर आ जाएगी।

🌹2)   प्याज को कतरकर जल से धोकर उसका 20 ग्राम रस निकाल कर उसमें 50 ग्राम मिश्री मिलाकर पिलाने से पथरी टूट कर पेशाब के द्वारा बाहर निकल जाती है।

🌹3)   मूली का रस 25 ग्राम व यवक्षार 1 ग्राम दोनों को मिलाकर रोगी को पिलायें। पथरी गलकर निकल जायेगी।

🌹4)   नीबू का रस 6 ग्राम, कलमी शोरा 4 रत्ती, पिसे तिल 1 ग्राम (यह खुराक की मात्रा है) शीतल जल के साथ दिन में 1 या 2 बार 21 दिन तक सेवन कराने से पथरी गल जाती है।

🌹5)नारियल का पानी और एक नीम्बू ,भगवान का नाम जप करके पीयो कुछ  दिन अपने आप पथरी निकाल जाती है

 

 बगैर तकिया लगाए सोने से होते हैं ये 5 फायदे, जरूर जानिए

आपको सालों से सिर के नीचे तकिया लगाकर सोने की आदत है, और अगर आप सोचते हैं कि बगैर तकिये के सोने से [गर्दन ]में दर्द हो सकता है, तो आप गलत हैं। बल्कि बगैर तकिये किे सोने से आपको कई तरह के शारीरिक और मानसिक लाभ हो सकते हैं। यदि आप अब तक अनजान हैं, तो जानिए बगैर तकिये के सोने से होते हैं कौन से 5 फायदे -

1 यदि आप अक्सर पीठ, [कमर ]या आसपास की मांसपेशि‍यों में दर्द महसूस करते हैं, तो बगैर तकिये के सोना शुरू कीजिए। दरअसल यह समस्या रीढ़ की हड्डी के कारण होती है, जिसका प्रमुख कारण आपका सोने का तरीका है। बगैर तकिये के सोने पर रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी रहेगी और आपकी यह समस्या कम हो जाएगी।

2 सामान्य तौर पर गर्दन और गंधों के अलावा पिछले हिस्से में दर्द आपके तकिये के कारण होता है। बगैर तकिये के सोने पर इन अंगों में रक्त संचार बेहतर होगा और आप दर्द से निजात पा सकेंगे।

3 कई बार गलत तकिये का इस्तेमाल आपको मानसिक समस्या भी दे सकता है। यदि तकिया कड़क है तो यह आपके मस्तिष्क पर बेवजह दबाव बना सकता है जिससे मानसिक विकार की संभावना बढ़ जाती है।

4 विशेषज्ञों का मानना है कि बगैर तकिये के सोना आपको निर्बाध रूप से अच्छी [नींद ](लेने में मदद करता है, और आप बेहतर गुणवत्ता के साथ आरामदायक नींद ले पाते हैं, जिसका असर आपके मूड और [स्वास्थ्य ]पर पड़ता है।

5 यदि आप नींद में अपना चेहरे तकिये की तरफ मोड़कर या तकिये में मुंह डालकर सोते हैं तो यह आदत आपके चेहरे पर झुर्रियां पैदा कर सकती है। इसके अलावा यह तरीका आपके चेहरे पर घंटों तक दबाव बनाए रखता है जिससे रक्त संचार प्रभावित होता है, और चेहरे की समस्याएं उभरती हैं।

 

 

♻️♻️♻️♻️♻️♻️♻️*साइनस नाक का एक रोग  क्या  है।*♻️♻️♻️♻️♻️♻️♻️

आयुर्वेद में इसे प्रतिश्याय नाम से जाना जाता है। सर्दी के मौसम में नाक बंद होना, सिर में दर्द होना, आधे सिर में बहुत तेज दर्द होना, नाक से पानी गिरना इस रोग के लक्षण हैं। इसमें रोगी को हल्का बुखार, आंखों में पलकों के ऊपर या दोनों किनारों पर दर्द रहता है।

तनाव, निराशा के साथ ही चेहरे पर सूजन आ जाती है। इसके मरीज की नाक और गले में कफ जमता रहता है। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति धूल और धुवां बर्दाश्त नहीं कर सकता। साइनस ही आगे चलकर अस्थमा, दमा जैसी गंभीर बीमारियों में भी बदल सकता है। इससे गंभीर संक्रमण हो सकता है।

क्या होता है साइनस रोग : साइनस में नाक तो अवरूद्ध होती ही है, साथ ही नाक में कफ आदि का बहाव अधिक मात्रा में होता है। भारतीय वैज्ञानिक सुश्रुत एवं चरक के अनुसार चिकित्सा न करने से सभी तरह के साइनस रोग आगे जाकर 'दुष्ट प्रतिश्याय' में बदल जाते हैं और इससे अन्य रोग भी जन्म ले लेते हैं। जिस तरह मॉर्डन मेडिकल साइंस ने साइनुसाइटिस को क्रोनिक और एक्यूट दो तरह का माना है। आयुर्वेद में भी प्रतिश्याय को नव प्रतिश्याय 'एक्यूट साइनुसाइटिस' और पक्व प्रतिश्याय 'क्रोनिक साइनुसाइटिस' के नाम से जाना जाता है।

आम धारणा यह है कि इस रोग में नाक के अंदर की हड्डी का बढ़ जाती है या तिरछा हो जाती है जिसके कारण श्वास लेने में रुकावट आती है। ऐसे मरीज को जब भी ठंडी हवा या धूल, धुवां उस हड्डी पर टकराता है तो व्यक्ति परेशान हो जाता है।

चिकित्सकों अनुसार साइनस मानव शरीर की खोपड़ी में हवा भरी हुई कैविटी होती हैं जो हमारे सिर को हल्कापन व श्वास वाली हवा लाने में मदद करती है। श्वास लेने में अंदर आने वाली हवा इस थैली से होकर फेफड़ों तक जाती है। इस थैली में हवा के साथ आई गंदगी यानी धूल और दूसरे तरह की गंदगियों को रोकती है और बाहर फेंक दी जाती है। साइनस का मार्ग जब रुक जाता है अर्थात बलगम निकलने का मार्ग रुकता है तो 'साइनोसाइटिस' नामक बीमारी हो सकती है।

वास्तव में साइनस के संक्रमण होने पर साइनस की झिल्ली में सूजन आ जाती है। सूजन के कारण हवा की जगह साइनस में मवाद या बलगम आदि भर जाता है, जिससे साइनस बंद हो जाते हैं। इस वजह से माथे पर, गालों व ऊपर के जबाड़े में दर्द होने लगता है।

इसका उपाय : इस रोग में सर्दी बनी रहती है और कुछ लोग इसे सामान्य सर्दी समझ कर इसका इलाज नहीं करवाते हैं। सर्दी तो सामान्यतः तीन-चार दिनों में ठीक हो जाती है, लेकिन इसके बाद भी इसका संक्रमण जारी रहता है। अगर वक्त रहते इसका इलाज न कराया जाए तो ऑपरेशन कराना जरूरी हो जाता है। लेकिन इसकी रोकथाम के लिए योग में क्रिया और प्राणायाम को सबसे कारगर माना गया है। नियमित क्रिया और प्राणायाम से बहुत से रोगियों को 99 प्रतिशत लाभ मिला है।

इस रोग में बहुत से लोग स्टीम या सिकाई का प्रयोग करते हैं और कुछ लोग प्रतिदिन विशेष प्राकृतिक चिकित्सा अनुसरा नाक की सफाई करते हैं। योग से यह दोनों की कार्य संपन्न होते हैं। प्राणायाम जहां स्टीम का कार्य करता है वही जलनेती और सूत्रनेती से नाक की सफाई हो जाती है। प्रतिदिन अनुलोम विलोम के बाद पांच मिनट का ध्यान करें। जब तक यह करते रहेंगे साइनस से आप कभी भी परेशान नहीं होंगे।

शुद्ध भोजन से ज्यादा जरूरी है शुद्ध जल और सबसे ज्यादा जरूरी है शुद्ध वायु। साइनस एक गंभीर रोग है। यह नाक का इंफेक्शन है। इससे जहां नाक प्रभावित होती है वहीं, फेंफड़े, आंख, कान और मस्तिष्क भी प्रभावित होता है इस इंफेक्शन के फैलने से उक्त सभी अंग कमजोर होते जाते हैं।

योग पैकेज : अत: शुद्ध वायु के लिए सभी तरह के उपाय जरूर करें और फिर क्रियाओं में सूत्रनेती और जल नेती, प्राणायाम में अनुलोम-विलोम और भ्रामरी, आसनों में सिंहासन और ब्रह्ममुद्रा करें। असके अलावा मुंह और नाक के लिए बनाए गए अंगसंचालन जरूर करें। कुछ योग हस्त मुद्राएं भी इस रोग में लाभदायक सिद्ध हो सकती है। मूलत: क्रिया, प्राणायाम और ब्रह्ममुद्रा नियमित करें।

 

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