उपयोगी प्रचलित कहावतें व अन्य जानकारियाँ
जब भुख , हित भुख , मित भुख – अर्थात् जब खुल कर भूख लगे तब हितकारी भोजन मित मात्रा में ( न अधिक न कम करना चाहिये । ।
प्रातः मूली अमिय मूरि , दोपहर में मूली मूली , रात में मूली सुली आयुर्वेद निघण्टुके अनुसार छोटी पतली चूँच वाली मूली चरपरी , गर्म , पेट , गुर्दे , बवासीर , पीलिया , जिगर , तिल्ली के लिये हितकर व त्रिदोषों को मिटाने वाली है । रात्रि में रखी मूली का सेवन प्रातः काल में विशेष लाभप्रद है बाद में जल न लें । इसके विपरीत मोटी बड़ी मूली चरपरी नहीं होती है , परन्तु त्रिदोष कारक होती है । अत : बड़ी मूली को घी या तेल में भून कर ही सेवन करना चाहिये । इससे उसका त्रिदोष पैदा करने वाला दोष समाप्त हो जाता
' भोर का खीरा हीरा , दोपहर का खीरा मीरा , शाम का खीरा पीरा ' अर्थात् खीरा का उपयोग प्रात : काल जलपान के रूप में ही श्रेष्ठ है ।
चैते गुड़ , वैशाखे तेल , जेठ रास्ता ( धूप में चलना ) असाड़े बेल , श्रावण शाक ( पत्तियां ) भादों मही , क्वार करेला , कार्तिक दही , अगहन जीरा , पूसै धना ( स्त्री संग ) , माघ मिश्री , फाल्गुन चना , इन बारहों से बचे जो भाई ता घर वैद्य कभी नहिं जाई , अतः जहाँ तक बन सके इन दिनों में यह सेवन नहीं करने चाहिय
भोजन के हानिकारक संयोग
दूध के साथ दही , नमक , खट्टी चीजें , इमली , खरबूज , नारियल , मूली या उसके पत्ते , तुरई , बेल , कुल्थी , खट्टे फल , सत्तू हानिकारक होते हैं । दूध में गुड़ घोलकर सेवन नहीं करना चाहिए । इससे प्रत्यक्ष में ही दूध फट जाता है । कटहल या तेल से बने पदार्थ भी हानिप्रद हैं
दही के साथ खीर , दूध , पनीर , गर्म भोजन , केला या केले का - साग , खरबूजा , मूली इत्यादि नहीं लेना चाहिए
घी के साथ ठंडा दूध , ठण्डा पानी और समान मात्रा में शहद हानिप्रद
शहद के साथ मूली , खरबूजा , समान मात्रा में घी , अंगूर , वर्षा का जल और गर्म जल हानिकारक होते हैं
खीरा के साथ ककड़ी नहीं लेनी चाहिए
कटहल के बाद पान हानिप्रद है
मूली के साथ गुड़ हानिप्रद है
चावल के साथ सिरका हानिप्रद हैं
खीर के साथ खिचड़ी , खट्टे पदार्थ , कटहल , सत्तू नहीं लेने चाहिए
गर्म जल के साथ शहद हानिप्रद होता है
शीतल जल के साथ मूंगफली , घी , तेल , खरबूजा , अमरूद , जामुन , ककड़ी , खीरा , गर्म दूध अथवा गर्म भोजन नहीं लेना चाहिए
खरबूज के साथ लहसुन , मूली या उसके पत्ते , दूध अथवा दही | हानिप्रद होते हैं
तरबूज के साथ — पोदीना या शीतल जल नहीं लेना चाहिए
चाय के साथ खीरा , ककड़ी या ठंडे फल या ठंडा पानी नहीं लेना चाहिए
मछली के साथ दूध , गन्ने का रस , शहद और पानी के किनारे रहने वाले पक्षियों का माँस नहीं खाना चाहिए
मांस के साथ मधु या पनीर लेने से पेट खराब होता है
गर्म भोजन के साथ ठंडे भोजन या ठंडे पेय हानिप्रद होते हैं
काँसा , ताँबा या पीतल के पात्रों में रखी हुई वस्तु जैसे घी तेल , खटाई , दही ; छाछ , दूध , मक्खन , रसदार दालें , सब्जियाँ आदि विषाक्त हो जाती हैं , अत : उनमें देर तक रखे पदार्थ नहीं खाने चाहिए
एल्यूमीनियम एवं प्लास्टिक के बर्तनों में तरल पदार्थ रखने , उबालने एवं खाने पीने से विभिन्न प्रकार के रोग पैदा होते हैं
भोजन के हितकारी संयोग
खरबूज के साथ शक्कर , आम के साथ दूध , केले के साथ छोटी इलायची , मुनक्के व अंजीर के साथ दूध और सर्दियों में छुहारों व खजूर के साथ दूध , इमली के साथ गुड़ , अमरूद के साथ नमक और काली मिर्च और बाद में सौंफ , तरबूज के बाद गुड़ , मकई के साथ मठा ( छाछ ) , चावल के साथ दही और उसके बाद नारियल की गिरी का टुकड़ा , मूली के साथ मूली के पत्ते , कटहल के बाद केला , बथुआ के साथ दही मिलाकर रायता , गाजर के साथ मेथी मिला साग लाभकारी होते हैं
रोगों के उपचार प्राय : विश्व की सभी उपचार पद्धतियों के उपचारक सर्वप्रथम रोगों के कारण का पता लगा कर उस कारण को दूर करते कराते हैं । यदि श्रम - विश्राम की गल्तियों से रोग हुआ हैं तो उसको ठीक कराते हैं । यदि भय , चिन्ता से रोग हुआ है तो उसको दूर करने का उपाय करते हैं । यदि नाभि के डिगने हटने से कष्ट हुआ है तो उसको ठीक करते हैं । यदि भोजन में आवश्यक तत्त्वों या लवणों की कमी से रोग हुआ है तो उसकी पूर्ति करते हैं । यदि किन्हीं रोगों के जीवाणुओं के आक्रमण के कारण रोग हुआ है तो उन दूषित जीवाणुओं को अपने अपने ढंग से नष्ट करते हैं । यदि खान - पान की गड़बड़ी या कब्ज के कारण रोग हुआ है तो खान - पान ठीक कराकर कब्ज दूर करते हैं , यदि रक्त संचार के अवरोध के कारण कष्ट हुआ है तो मालिश व्यायाम आदि के द्वारा इसको ठीक करते हैं । यदि कहीं दूषित पदार्थ एकत्र होने से कष्ट हुआ है तो उसको शल्य क्रियाओं द्वारा अलग कर देते हैं आदि आदि ।
निरोगी रहने हेतु महामन्त्र
मन्त्र 1 :-
• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें
• रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें
• विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)
• वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)
• एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)
• मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें
• भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें
मन्त्र 2 :-
• पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)
• भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)
• सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाये
• ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें
• पानी हमेशा बैठ कर घुट घुट कर पिये
• बार बार भोजन न करें आर्थत एक भोजन पूर्णतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें
उस भोजन को ग्रहण कदापि न करें जिसे बनते हुए सूर्य प्रकाश न मिला हो अर्थात (कुकर का, फ्रीज़ का रखा व माइक्रोवेव का बना हो)
भाई राजीव दीक्षित जी के सपने स्वस्थ समृद्ध स्वदेशी स्वावलंबी स्वाभिमानी परिवार समाज भारत राष्ट्र के निर्माण में एक पहल आप सब भी अपने अपने जीवन मे भाई राजीव दीक्षित जी के व्यख्यानों को अवश्य सुनें व यथसम्भव प्रचार प्रसार करें
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स्वस्थ रहने के ४ ज़रूरी नियम । 4 Essential Tips To Remain Healthy Throughout Your Life