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सोमवार, 25 जनवरी 2021

#शलभासन : कमर को लचीला #Shalabhasana: flexible to the waist

शलभासन : कमर को लचीला बनाने के लिए किए जाने वाला आसन : जानिए इसके फायदे और कायदे 


शलभ का अर्थ टिड्डी (Locust ) होता है। यह आसन अंतिम मुद्रा में शरीर टिड्डी जैसा लगता है, इसलिए इसे इस नाम से जाना जाता है। इसे Locust Pose Yoga भी कहते हैं। यह कमर एवं पीठ दर्द के लिए बहुत लाभकारी आसन है। इसके नियमित अभ्यास से आप कमर दर्द पर बहुत हद तक काबू पा सकते हैं।

शलभासन के लाभ

1 यह कमर दर्द के लिए अति उत्तम योगाभ्यास है। इसके नियमित अभ्यास से आप पुराने से पुराने कमर दर्द से निजात पा सकते हैं।

2 यह पेट की मालिश करते हुए पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है।

3 यह तंत्रिका तंत्र को मजबूत बनाता है और इसके सक्रियता को बढ़ाता है।

4 कब्ज से निजात पाने के लिए यह लाभकारी योग है।

5  इस आसन के अभ्यास से आप दमा रोग को कण्ट्रोल कर सकते हैं

6 यह रक्त साफ करता है तथा उसके संचार को बेहतर बनाता है।

7 शरीर के लचीलापन को बढ़ाता है और आपको बहुत सारी परेशानियों से दूर रखता है।

8 साइटिका: यह आसन साइटिका को ठीक करने के लिए अहम भूमिका निभाता है।

9 यह पैंक्रियास को नियंत्रण करता है और मधुमेह के प्रबंधन में सहायक है।

10 पेट और कमर की अतरिक्त वसा को कम करता है, इस तरह से वजन कम करने में सहायक है।

11 इसके अभ्यास से आप गर्भाशय सम्बंधित परेशानियों को कम कर सकते हैं।

12 इसके अभ्यास से पेट गैस को कम किया जा सकता है।

13 मणिपूर्ण चक्र के लिए प्रभावी योग है।

14 यह नाभि को सही जगह पर रखता है।
 
शलभासन की विधि

सबसे पहले आप स्वच्छ आसन बिछाकर पेट के बल लेट जाएं।

अपने हथेलियों को जांघों के नीचे रखें।

एड़ियों को आपस में जोड़ लें।

सांस लेते हुए अपने पैरों को यथासंभव ऊपर ले जाएं।

धीरे धीरे सांस लें और फिर धीरे धीरे सांस छोड़े और इस अवस्था को बनाएं रखें।

सांस छोड़ते हुए पांव नीचे लाएं।

यह एक चक्र हुआ।

इस तरह से आप 3 से 5 बार करें।

निरंतर अभ्यास से चक्र और समयावधि को बढ़ाया जा सकता है किन्तु नौसिखिए इसे शुरुआती दौर में योग्य व्यक्ति के सहयोग से  और कम समय के लिए ही करें 

शलभासन की सावधानिया
 
मेरुदंड की समस्या में इसे न करें।
ज़्यदा कमर दर्द में इसका अभ्यास न करें।

पेट का ऑपरेशन होने पर इसको करने से बचें।

इस आसन को उच्च रक्तचाप की स्थिति में नहीं करनी चाहिए।

हृदय रोग से पीड़ित व्यक्ति को इस आसन के प्रैक्टिस से बचना चाहिए।

दमा के रोगियों को यह आसन नहीं करना चाहिए।

शुरुवाती दौर में इसको ज़्यदा देर तक न रोकें।

हर्निया की स्थिति में इसका अभ्यास न करें।

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